________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ -आधुनिक सन्दर्भ में जैन धर्म - III, pp.102-200. 159,ff. (ब) अनेकान्त, वर्ष 28 किरण 1, पृ०२४८ 69. जैनशिलालेख संग्रह, भाग 5, लेखक्रमांक 117. 56. (अ) वही, पृ० 248 70. Jainism in South India, P.B. Desai, p. 404 (ब) South Indian Inscriptions XII No. 65, Ma- 71. जैनशिलालेख संग्रह, सं० भाग 2, क्रमांक 384. dras 1940. 72. जिनविजय (कन्नड़) बेलगाँव जुलाई 1931 57. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 4, लेख क्रमांक 130 73. अनेकान्त, वर्ष 28, किरण 1, पृ० 250. 58 वही, 74. Epigraphia Indian X. No. 6; see Tbid., p. 247. 59 (अ) अनेकान्त, वर्ष 28, किरण 1, पृ० 248 75. अनेकान्त, वर्ष 28, किरण 1, पृ० 244-45. (a) South Indian Inscriptions, XII No. 65, Ma- 76. वही, वर्ष 28, किरण 1, पृ० 250. dras 1940. 77. जैन शिलालेख संग्रह, भाग लेख क्रमांक / (स) जैन शिलालेख संग्रह, भाग 4, लेखक्रमांक 131 78. Annals of the B.O.R.I. XV, pp. 198, Poona 60. वही, भाग 4, लेखक्रमांक 143 1934, 61. वही, 168 79. व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर / 62. वही, भाग 5, लेखक्रमांक 69-70 80. दिगम्बरा: पुनर्नाग्न्यलिङ्गाः पाणिपात्राश्च / ते चतुर्धा 63. I.A. XVIII. p. 309, Also see Jainism in South काष्ठासङ्घमूलसङ्घ- माथुरसङ्घ-गोप्यसङ्घ-भेदात् / काष्ठासंघे India P.B. Desai, p. 115 चमरीबालैः पिच्छिका, मूलसङ्के मायूरपिच्छै: पिच्छिका, माथुरसङ्के 64. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, लेखक्रमांक 250 मूलतोऽपि पिच्छिका नादृता, गोप्या मायूरपिच्छिका / आद्यास्त्रयोऽपि 65. Annual Report of South Indian Insciptions. सङ्घावन्द्यमाना धर्म वृद्धिं भणन्ति, स्त्रीणां मुक्तिं केवलिना भुक्ति 1951-52, No. 33, p- 12 See also. सव्रत-स्यापि सचीवरस्य मुक्तिं च न मन्वते, गोप्यस्तु वन्द्यमाना अनेकान्त, वर्ष 28, किरण 1, पृ० 248 धर्मलाभं भणन्ति, स्त्रीणां मुक्ति केवलिनां भुक्ति च मन्यन्ते / 66. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 4, लेखक्रमांक 207 गोप्या यापनीया इत्यप्युच्यन्ते। 67. वही, भाग 4, लेखक्रमांक 259. -षडदर्शनसमुच्चय-हरिभद्रसूरि, कारिका 44: 2 गुणरत्न टीका 68. Journal of the Karnatak University, X, 1965, aroramonianoramironionsanilonborordwardwarorani89 ]inoritiiranidirdrianiraaniraniraniraniranorand Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org