Book Title: Jain Dharm ka Trividh Sadhna Marg Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 6
________________ यतीन्द्र सूरि स्मारकग्रन्थ - जैन-साधना एवं आचार अपनी आत्मा को आश्वासन देते हैं 32 / आवश्यकनियुक्ति में 10. सामायिकसूत्र-सम्यक्त्व पाठ ज्ञान और आचरण के पारस्परिक संबंध का विवेचन अत्यंत 12. सूत्रकृतांग 1/1/2/23 विस्तृत रूप से किया गया है। आचार्य भद्रबाहु कहते हैं कि 13. समयसारटीका 132 आचरणविहीन अनेक शास्त्रों के ज्ञाता भी संसारसमुद्र से पार 14. देखिये-समयसार 392-407 नहीं होते। ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक संबंध को लोक प्रसिद्ध नियमसार 75-81 तुलनीय-संयुक्तनिकाय 34/1/1/1-12 अंध-पंगु न्याय के आधार पर स्पष्ट करते हुए आचार्य लिखते हैं प्रवचनसार 1/7, पंचास्तिकायसार 107 कि जिस प्रकार एक चक्र से रथ नहीं चलता है या अकेला 16. उत्तराध्ययन 28/30 अंधा अथवा अकेला पंगु इच्छित साध्य को नहीं पहुंचते वैसे ही मात्र ज्ञान अथवा मात्र क्रिया से मुक्ति नहीं होती, अपितु दोनों के विनों 18. दर्शनपाहुड 2 19. उत्तराध्ययनसूत्र 28/35 सहयोग से ही मुक्ति होती है।३३ जैन-दर्शन का यह दृष्टिकोण 20. उत्तराध्ययन 23/35 मनुष्यों में श्रेष्ठ है।' 34 24. सयुका उद्धरण 1. तत्त्वार्थसूत्र 1/1 2. उत्तराध्ययनसूत्र 28/2 सुत्तनिपात 28/8 गीता 4/34,4/39 Psychology and Morals, P.180 उत्तराध्ययन 28/30 Some problems of jain psychology P. 32 अभिधानराजेन्द्र कोष खंड 5, पृ. 2425 तत्त्वार्थ 1/2, उत्तराध्ययन 28/35 23. संयुक्तनिकाय 1/1/59 संयुक्तनिकाय 4/41/8 25. विसुद्धिभग्ग 4/47 26. भक्तपरिज्ञा 65-66 27. आचारांगनियुक्ति 221 28. दशवैकालिक 4/12 29. उत्तराध्ययन 28/30 30. समयसारटीका 153 तुलनीय-गीता,शांकरभाष्य,अध्याय 5 की पछिका 31. सूत्रकृतांग 2/1/7 32. उत्तराध्ययन 6/9-11 33. आवश्यकनियुक्ति 95-102 तुलनीय--नृसिंह पुराण 61/9/11 34. मज्झिमनिकाय 2/3/5 scooi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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