________________ षडावश्यक करे, और योग्य काल में निद्रालेवे प्राय: अब्रह्मचर्य का वर्जक होवे / सोता हुआ पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्मरण करके सोवे / सर्वथा ब्रह्मचर्य पालने समर्थ न होवे, तो ऋतु काल में संतानार्थ, अथवा वेद विकार शमनार्थ निज स्त्री से औदासीन्यता से विकार शमन करे; पर अत्यंत विषय में रक्त होकर भोग विलास न करे / यह संक्षेप से गृहस्थ श्रावक धर्मी का रात्रिकृत्य जानना / यह सर्व संक्षेप से गृहस्थ धर्म का वर्णन है // 14. श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org