Book Title: Jain Dharm aur Paryavaran Santulan
Author(s): Nemichandramuni
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 7
________________ 200000000000 23- NOVAAD 2065280 N उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । विष मिश्रित-सा बना देने का कार्य किया है, कर रहे हैं। उन वायुमण्डल दोनों को दूषित और आच्छादित कर देते हैं। इस कारण महानदियों का पानी इतना दूषित हो चुका है कि वह पीने योग्य वहाँ के निवासियों और कारखानों के कर्मचारियों की जिंदगी उस नहीं रहा। पर इस ओर उन यंत्र जीवी लोगों का ध्यान बिल्कुल | प्रदूषण से रोगग्रस्त और अल्पायुषी हो जाती है। कुछ वर्षों पहले नहीं रहा. अगर उन भौतिक विज्ञान के अनुचरों में अध्यात्म का भोपाल में गैस रिसाव काण्ड तथा बम्बई में हुए बमकाण्ड आदि ने पुट होता तो वे प्राणिमात्र के साथ मैत्रीभाव, बन्धुभाव और समस्त वायुमण्डल को प्रदूषित करके अनेक लोगों के प्राणहरण कर आत्मौपम्य भाव से सोचकर इस पर्यावरण प्रदूषण से बचते। जलीय लिये थे, जो व्यक्ति घायल हुए, वे भी अपंग, रोगग्रस्त या सत्त्वहीन प्रदूषण के कारण कितनी मछलियाँ और जल जन्तु मर जाते हैं। रह गए। कभी-कभी कहीं अग्निकाण्ड हो जाता है तो वह भी वायु के | महासंहारक अणु-बमों और उपग्रहों आदि समुद्रजल में जब परीक्षण पर्यावरण को प्रदूषित कर देता है। किया जाता है, तब पर्यावरण तो प्रदूषित होता ही है, प्राणिजीवन के नाश के साथ-साथ मौसम पर भी उसका जबर्दस्त प्रभाव पड़ता पर्यावरण दूषित होने से मानव स्वास्थ्य खतरे में है। इस कारण कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि, कहीं सूखा, कहीं पर्यावरण और मानव-स्वास्थ्य का गहरा सम्बन्ध है। विकसित भूकम्प और बाढ़, तूफान आदि प्राकृतिक प्रकोप होते रहते हैं। राष्ट्र जो सुचारु स्वास्थ्य के प्रति सदैव जागृत हैं, वर्तमान भौतिक विकास के कारण होने वाले पृथ्वी, जल, वनस्पति एवं वायु में हुए देवता मानकर भी प्राकृतिक पदार्थों का पर्यावरण पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से बहुत व्यथित हैं। इस प्रदूषण से पानी प्रदूषित करते हैं दूषित, पृथ्वी दूषित और वायु दूषित हो रहा है, इतना ही नहीं, अति प्राचीन काल के वैदिक धर्म के मूर्धन्य ग्रन्थों-वेदों, मानव का तन और मन भी दूषित हो रहा है। आज पर्यावरण और ब्राह्मणों, पुराणों और उपनिषदों में जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी, जन-स्वास्थ्य दोनों ही बाह्य प्रदूषण द्वारा नष्ट किये जा रहे हैं। जल, वनस्पति, आकाश आदि सभी को क्रमशः वरुण, वैश्वानर, मरुत, मिट्टी और वायु से निकलने वाले जहरीले प्रदूषणकारी तत्त्व श्वास भूमि, वनस्पति, वियत् आदि देव कहकर उनकी दिव्यशक्तियों से । लेते समय, खाते-पीते समय मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यदि यत्र-तत्र प्रार्थना की गई है। पृथ्वी को "माता भूमिः पुत्रोऽह प्रदूषण का स्तर काफी ऊँचा होता है या लम्बे समय तक कम मात्रा पृथिव्याः " (भूमि माता है, मैं भूमि का पुत्र हूँ) कहा है। आज वे ही में भी प्रदूषण एकत्रित होते रहते हैं तो ऐसे प्रदूषणों से कैंसर, गैस, आर्यों के वंशज पृथ्वी पर गंदगी, कूड़ा-कर्कट, मल-मूत्र तथा / दमा, क्षय, रक्तचाप आदि जैसे जान लेवा रोग भी हो सकते हैं।। कल-कारखानों का गंदा दूषित तथा रासायनिक पदार्थ मिला हुआ नदियों का जल विविध उद्योगों से निकले गंदे जल के मिलने से गंदा पानी आदि डालते हैं, अथवा पृथ्वी का पेट फाड़ने हेतु बड़े-बड़े हो जाता है, फिल्टर करने के बावजूद भी उस पानी को पीने से । विस्फोट करते हैं, डायनामाइट लगाते हैं, ये सब पृथ्वी सम्बन्धित अनेक उदररोग, गैसट्रबल एवं हृदय रोग तक हो जाते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं, भूमिमाता को उसके पुत्र (मानव) मानव-समाज का हर व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ा होने के कारण किसी। प्रदूषित करें, यह अशोभनीय है। अग्नि का पर्यावरण भी कम न किसी रूप में एक-दूसरे के काम आता है, वैसे ही प्रकृति रूप प्रदूषित नहीं है। कई लोग कचरे, वनस्पति, जंगल आदि में आग समाज का भी हर तत्त्व एक दूसरे से जुड़ा है। अतः प्रकृति के जल, लगाकर उनके आश्रित जीवों का संहार कर देते हैं, साथ ही सहारा वायु, भूमि आदि किसी भी तत्त्व में असंतुलन होगा, इनका सीमा से या जैसलमेर आदि रेगिस्तानों में अणु-अस्त्रों या उपग्रहों का परीक्षण अधिक उपभोग होगा, इनसे छेड़छाड़ होगी तो प्रकृति का ढाँचा टूटे | करते हैं, जिससे सारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। कई रोग फैल बिना न रहेगा और उसके दुष्परिणाम मानव जाति को भोगने पड़ेंगे। जाते हैं। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, चुरट आदि धूम्रपान करके वायु-सम्बन्धित प्रदूषण बढ़ाते हैं। वनस्पति का प्रदूषण भी कम नहीं बाह्य प्रदूषण और उससे होने वाली भयंकर हानि की आशंका है। जगह-जगह वन काटकर, वनस्पति को जलाकर अथवा ऐसी बाह्य प्रदूषण और क्या है? मनुष्य द्वारा होने वाले विविध रासायनिक दवाइयाँ डालकर केला, आम, पपीता आदि फल पकाते कार्यकलापों के कारण पर्यावरण में छोड़े गए गंदे, सड़े-गले, । हैं जिससे उसमें से बहुत-सा विटामिन निकल जाता है। वनस्पतियों से दुर्गन्धयुक्त रोगोत्पादक अवशिष्ट पदार्थ। इसी प्रदूषण के कारण जो ऐलोपैथिक दवाइयाँ बनाई जाती हैं, वे भी रुग्ण व्यक्ति के द्वारा मानव जाति आज प्रकृतिमाता के प्रति घोर अपराधिनी बन गई है। सेवन करने के बाद साइड एफेक्ट करती हैं, रिएक्सन भी करती हैं। यही कारण है कि उर्वरा भूमि के बंजर होने की शंकाएँ बढ़ रही हैं। यब सब वनस्पति प्रदूषण के कारण होता है। वायुप्रदूषण भी बड़े-बड़े । पंजाब के एक प्रमुख कृषि वैज्ञानिक ने कुछ ही महीनों पहले कहा शहरों के कल-कारखानों से निकलने वाले धुंए से फैलता है। पेड़ों की था-"पंजाब में जिस तरह की फसलें ली जा रही है, एवं धरती के कटाई के कारण वन और वन्य जीव लुप्त होते जा रहे हैं। झीलें। नीचे के पानी का जिस प्रकार से उपयोग किया जा रहा है, उसे सूखती जा रही हैं। नगरों के पास नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है। देखते हुए यह संभावना है कि आगामी दशक में पंजाब जैसलमेर और न ही नगरों का पानी पीने योग्य रहा है। बोकारो, राउरकेला, जैसा बन सकता है। पंजाब की जमीन पूर्णतया ऊसर हो सकती है, रांची आदि नगरों में बड़ी-बड़ी धमण भट्टियों के कारण उनसे उठने । पानी भी पूरी तरह से सूख सकता है। शहरों की प्रदूषित वायु और वाला धुंआ और आग की लपटें वहाँ के सारे आकाश और जल जीवन रक्षण के बजाय जीवन भक्षण करने वाले बन सकते हैं। लयकामायणमायनकायमाए यायलयय MOUNOD 290818090000000000000000000 92.920960000.0000000 adioaldemasinosp o Po90.90600-SDPHAPORDonusarSom DO 6000008066065 @w.janeyasingarga 000000000000000000000000000000.00 EPAL00000RRAGAR alo

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