Book Title: Jain Dharm aur Aainstain ka Sapekshatavada Author(s): Nandighoshvijay Publisher: Z_Jain_Dharm_Vigyan_ki_Kasoti_par_002549.pdf View full book textPage 2
________________ का अर्थ विभिन्न विज्ञानी विभिन्न रीति से करते हैं । दूसरी पूर्वधारणा यह है| कि प्रकाश का वेग अचल (constant) है । उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता है अर्थात् प्रकाश का वेग 3,00,000 कि. मी./से. से ज्यादा भी नहीं हो सकता है और उससे कम भी नहीं हो सकता। ___ आज आइन्स्टाइन के विशिष्ट सापेक्षता सिद्धांत व सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बारे में पुनर्विचारणा करने का समय आचूका है क्योंकि थोड़े समय पूर्व अमरिका में स्थित भारतीय विज्ञानी डॉ. इ. सी. जी. सुदर्शन ने गाणितिक रीति से प्रकाश से ज्यादा वेग वाले कण का अस्तित्व सिद्ध किया है और उसका नाम उन्होंने टेक्योन (Tachyon) रखा है । इतना ही नहीं अमरिका की प्रिन्स्टन युनिवर्सिटी के विज्ञानी डॉ लिजन वांग के अंतिम अनुसंधान अनुसार प्रकाश का अपना वेग भी उसके असल 3,00.000 कि. मी./से से 300 गुना ज्यादा मालुम पड़ा है और अन्य एक विज्ञानी ने प्रकाश के वेग को कम करते हुए शून्य तक भी करके स्थिर किया गया है । इस | प्रकार वर्तमान में आइन्स्टाइन की दोनों पूर्वधारणा गलत सिद्ध होने की तैयारी में हैं। जैनदर्शन के धर्मग्रंथ स्वरूप पंचमांग श्री भगवती सूत्र अर्थात व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र नामक आगम में श्री महावीरस्वामी ने उनके प्रथम शिष्य गणधर श्री गौतमस्वामीजी द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट रूप से बताया है कि -- परमाणुपोग्गले णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चस्थिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, पच्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमंतं एगसमएण गच्छति. दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्ल० जाव गच्छति, उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं० जाव गच्छति, उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेल्लिं चरिमंतं एग० जाव गच्छति, हेट्ठिल्लाओ चरिमंताओ उपरिल्लं चरिमंतं एगसमएण गच्छति ? हंता गोतमा । परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ पच्चस्थिमिल्लं० तं चैव जाव उवरिरल्लं चरिमंत गच्छति । . (भगवतीसूत्र. शतक-16. उद्देशक-8) परमाणु पुद्गल अर्थात् ऍटम एक ही समय में इस ब्रह्मांड अंतिम 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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