Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 05
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 50
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-५/४८ एक दिन दण्डक वन में अनायास ही लक्ष्मण को सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति हई और उसके प्रयोग करने मात्र से खरदूषण के पुत्र शंवुक का मरण हुआ, तब खरदूषण और लक्ष्मण में भयंकर युद्ध दिया, उस युद्ध में सहायतार्थ आ रहे रावण ने सीता का अवलोकन मात्र किया और उस पर मुग्ध होकर राम को छलपूर्वक सीता से पृथक् कर सीता का हरण कर लिया। तब सीता की खोज करते हुए राम-लक्ष्मण का मिलन किष्किंधा नगरी के राजा सुग्रीव से हुआ। उस समय किष्किंधा नगरी के महान राजा सुग्रीव के यहाँ एक विचित्र बात बनी। सुग्रीव की पत्नि सुतारा अत्यन्त मनोहर थी; साहसगति नाम का एक विद्याधर उस पर मोहित हुआ और वह स्वयं सुग्रीव जैसा ही रूप बनाकर महल में घुस गया और सच्चे सुग्रीव को निकाल दिया। सच्चा सग्रीव स्त्री के विरह में बहुत दुःखी हुआ, उसने अपने दामाद हनुमान की मदद माँगी; परन्तु दोनों में से सच्चा सुग्रीव कौन है और झूठा सुग्रीव कौन है ? यह नहीं पहिचान सकने के कारण हनुमान भी कुछ नहीं कर सका। अंत में वह सुग्रीव राम-लक्ष्मण की शरण में आया । राम भी स्त्री के विरह में दुःखी थे और सुग्रीव भी स्त्री के विरह में दुःखी थे। दोनों समान दुखिया एक-दूसरे के मित्र बने। सुग्रीव राजा वानरवंशी विद्याधरों का अधिपति था; उसका बड़ा भाई बालीराज रावण को मस्तक नमाने के बदले जिनदीक्षा लेकर मुनि हो गये थे, सुग्रीव ने आकर राम को सभी बातें बताईं। श्री राम ने विचार किया कि – “मैं इसकी स्त्री वापिस दिलाकर इसका विरह मिटा दूंगा तो ये भी सीता की खोज करने में मेरा सहयोग करेगा और यदि यह भी खोज नहीं कर सका तो मैं निग्रंथ मुनि होकर मोक्ष को साधूंगा।" सुग्रीव ने पुन: कहा- “हे स्वामी ! मेरा कार्य होने पर मैं भी तुरन्त ही सीता को खोज लूँगा।" - इस कारण राम ने साहसगति को हराकर सुग्रीव की स्त्री और

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