Book Title: Jain Darshan me Samtavadi Samaj Rachna ke Prerak Tattva Author(s): Nizamuddin Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf View full book textPage 5
________________ तो हमारी अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। समतावादी समाज की संरचना के लिए सहिष्णुता या सहनशीलता का होना भी अनिवार्य है। भारत में शासनप्रणाली की प्रमुख विशेषता धर्मनिरपेक्षता है । धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्मविमुख होना नहीं है, वरन् इसका अर्थ है जैसे हम अपने धर्म को महान् श्रेष्ठ समझते है, वैसे ही दूसरों के धर्मों को महान् और श्रेष्ठ समझे। हम यदि चाहते है कि हमारे धर्मग्रन्थ या धर्मग्रन्थों की कोई अवमानना न करे, सब लोग उनका सम्यक् सम्मान करें तो हमें भी चाहिए कि हम भी दूसरी जाति के धर्म का धर्मग्रन्थों का उचित सम्मान करें। दूसरों की र्धमपद्धति या जीवनपद्धती के प्रति उचित सम्मान प्रदशित करना हमारा कर्तव्य है, पर हम ऐसा करते कहाँ है? तभी बाबरी मस्जिद और रामजन्मभूमि मंदिर पर झगडा खडा करके एक दूसरे की जान लेने पर उतारु हो जाते है । हमारे पास महान् धर्मग्रन्थ है महान् धर्मोपदेशक और धर्मगुरु है, विद्वान है, आचार्य है, लेकिन आचरण हम सर्वथा विपरीत करते है । कष्टसहिष्णु तो है हि नहीं, दूसरे के कटु शब्द भी सहन करने की सहनशीलता, विशालहृदयता हमारे अन्दर नहीं । हमारा दृष्टिकोण ही संकुचित और दूसरों के प्रति द्वेष - घृणा से पूर्ण रहता है। मानवीय संदर्भ नहीं होते हमारे जीवन व्यवहार में । हम यह जानते है कि क्रोध प्रीति का नाश करता है, माया मैत्री का नाश करती है और लोभ सबका (प्रीति, विनय, मैत्री का) नाश करता है । २३ हमें चाहीए कि उपशम से क्रोध को नष्ट करें मृदुता से नाम को जीते, ऋजुभाव से माया और संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त करे । २४ धर्म जोडने का काम करता है, तोडने का नहीं । धार्मिक असहिष्णुता न जाने कितने वर्षो से अनिष्ट करती आ रही है । जैनदर्शन सभी मतों का समान आदर करने की दृष्टि प्रस्तुत करता है । आचार्य हरिभद्र ने धार्मिक सहिष्णुता के कारण ही अनात्मवाद (बौद्धदर्शन), कर्तृत्ववाद ( न्यायदर्शन), सर्वात्मवाद ( वेदान्त) में भी सामंजस्य दर्शाने का सत्प्रयास किया। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि संसार परिभ्रमण के कारण रुप रागादि जिसके क्षय हो चुके है, उसे मै प्रणाम करता हुँ, फिर चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, महेश हो अथवा जिन हो । जैनदर्शन में समतावादी समाज के लिए वैचारिक सहिष्णुता, अनाग्रही विचारधारा बडा योग दे सकती है। जैनदर्शन में इसी को अनेकान्तवाद कहा जाता है। आज सभी देशों में मताग्रह के कारण शीतयुद्ध जैसा वातावरण बना हुआ है। हमारे समाज में, परिवार में मताग्रह के कारण २३. दशवैकालिक ८/३७ २४. दशवैकालिक ८/३८ २०८ Jain Education International मन की पंखुडियाँ जब एक्यता के सूत्र से पृथक हो जाती है तो प्रत्येक मानवीय प्रयत्न सफल नहीं हो सकते। For Private Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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