Book Title: Jain Darshan Adhunik Sandarbh Author(s): Harendraprasad Varma Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 3
________________ चरे।' किसी का अनुकरण या अनुसरण न करो। सत्य को स्वयं जानो; क्योंकि उधार लिया गया सत्य मुक्त नहीं करता, उल्टे वह परिग्रह बन जाता है । इसी कारण महावीर ने शास्त्रीयता का विरोध किया। उन्होंने कहा है-वेया अहीया न भवन्ति ताणं । ( वेद को रट लेना वाण नहीं दे सकता है।) वेद-जिसका दृष्टिकोण निगमनात्मक (Deductive ) है, क्योंकि उसमें उद्घाटित (Revealed) सत्यों को जीवन में लागू करने पर जोर है- उसके विरोध में भगवान् महावीर और बुद्ध ने आगमनात्मक विधि पर बल दिया और इस बात का समर्थन किया कि मनुष्य को स्वयं अपने प्रयत्नों से सत्य को जानना चाहिए, क्योंकि सत्य की खोज, जैसा कि प्लोटिनस ने कहा है – 'अकेले की अकेले की ओर उड़ान' (Flight of the alone to the alone ) है । सत्य को स्वानुभव से ही जाना जा सकता है, जैसे स्वयं भोजन करने से ही भूख मिटती है। इसलिए भगवान् बुद्ध ने कहा है – आत्मदीपो भव । और भगवान् महावीर ने भी कहा है'अपने द्वारा ही अपना संप्रेक्षण निरीक्षण करें ।' भगवान् बुद्ध संपिक्खए अप्पगमप्पयणां ।' ने 'कहा था मेरी बातों को परीक्षा करके ग्रहण करो, मेरे महत्त्व के कारण नहीं । परीक्ष्य भिक्षवो ! ग्राह्यं मद्वाचो न तु गौरवात् । भगवान् महावीर ने तो प्रयोग और परीक्षण पर पूरा जोर दिया है। उन्होंने कहा- 'तत्वों का निश्चय करने वाली बुद्धि से धर्म को परखो !' बिना परखे किसी चीज को नहीं मानना चाहिए। पण समित धम्मं तसं तत्त-विनिच्यिं । इस प्रकार प्रयोग और प्रामाणीकरण की जो वैज्ञानिक दृष्टि है, जैन-दर्शन उसके सर्वधा अनुकूल है। यह बात दूसरी है कि इन्द्रियानुभव तक ही सीमित है, जबकि जैन दर्शन के अनुसार अनुभव 'एकेन्द्रिय चेतना' से लेकर 'सर्वज्ञता' तक हो सकता है। इसका एक लम्बा विस्तार है जिसमें १° से लेकर १०० तक चेतना की सम्भावना है। इसी कारण जैन दर्शन इन्द्रियानुभव के साथ ही साथ अन्य प्रकार के अनुभवों को भी महत्त्व देता है और मति, श्रुति, अवधि ज्ञान, मनः पर्याय, तथा केवल ज्ञान सबों को ज्ञान का साधन मानता है । मति तावधिमन:पर्ययकेवलानि ज्ञानम् ।" (२) भौतिकवादी विचारधारा (Materialism ) - आधुनिक युग भौतिकवादी है। विज्ञान की प्रवृत्ति ही भौतिकवादी है क्योंकि उसकी मान्यता है कि भौतिक पदार्थ (matter) ही मूल सत्ता है और उसी से जगत् की सभी सत्ताओं का विकास हुआ है । सम्पूर्ण जीव एवं चेतन जगत् का विकास पदार्थ से ही हुआ है। आधुनिक युग में कार्ल मार्क्स ने भौतिक पदार्थ को ही मूल सत्ता माना और भौतिक तत्त्व से ही चेतना की उत्पत्ति मानी । " १. आचारांगसूत २. उत्तराध्ययनसूत्र १४ / १२ ३. दशवेकालिकसून, चूलिका, २, १२ ४. उत्तराध्ययनसून, २३/२५ ५. तत्त्वार्थ सूत्र, १/२ . John Keosin. "From the materialists view, the origin of life was no more accident; it was the result of matter evolving to higher levels through the inexorable working out at each level of its inherent potentialities to drive at the next level". – The Origin of life, Chapman & Hall Ltd. London, 1964. पृ० ३ ७. Marks and Engels, “Feuerbach opposition of Materialistic and Idealistic outlook." Selected Worás, Vol. 1, पृ० ३२ Engles ने स्पष्ट लिखा है "Our consciousness and thinking, however suprasensuous they may seem are the products of a material, bodily organ, the brain. Matter is not a product of mind, but mind itself is merely higher product of nature". Ludwing Feuer bach, Ch-2, quoated by Maurice Conforth, Dialectical Materialism : The Theory of Knowledge, National Book Agency, Calcutta. 1955, पृ० ३५ जंन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only ५१ www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9