Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 98
________________ 'वायरस' इतना शक्तिशाली और संक्रामक है कि परिवार शहर में विश्व व्यापार केंद्र के विशाल भवनों और वाशिंगटन के एक व्यक्ति को लगने के बाद पूरे परिवार पर अपना में अमरीकी रक्षाविभाग 'पेंटागन' के भवन पर हुए शिकंजा कस लेता है। पारस्परिक संदेह, निरपेक्षता का आतंकवादी हमलों से संसार की सबसे बड़ी शक्ति दहशत मनोभाव, सहयोगी मनोवृत्ति का अभाव, स्वार्थपरता का में आ गई। इन हमलों के अनेक कारण हो सकते हैं। उनमें विकास आदि ऐसे लक्षण हैं, जो उस 'वायरस की सूचना सबसे बड़ा कारण असहिष्णुता है, असामंजस्य है और सहदेने वाले हैं। अस्तित्व की नीति का अभाव है। सहिष्णुता, सामंजस्य या भारतीय परंपरा में दूर-दराज के रिश्तों में भी अनुपम । अनेकांत का आलंबन लेकर हिंसा या युद्ध की समस्या को मिठास का अनुभव होता था। भाई-भाई, पिता-पुत्र, मां सदा-सदा के लिए समाप्त किया जा सकता है। बेटी, सास-बहू, भाभी-ननद आदि सभी रिश्ते आत्मीय सत्य अपने-आप में सत्य होता है। व्यवहार में धरातल पर अंकरित होते थे। जब तक इन संबंधों में अपने उसकी सत्यता का आधार अनेकांतवादी दृष्टिकोण बनता और पराए की भेदरेखा नहीं उभरी, तब तक परिवार अच्छे ह है। एकांतवादी दृष्टि व्यक्ति को सत्य से दूर ले जाती है ढंग से चलते रहे। स्व और पर की भावना पुष्ट होते ही टोले ही ॐ और विचार या विग्रह खड़ा कर देती है। परिवार में ऐसी दरार हो जाती है, जिसे भरना बहुत कठिन पांच अंधे मित्र किसी गांव में घूम रहे थे। उन्होंने है। यदि मनुष्य सहने की कला सीख लेता तो ऐसी दरार को हाथी का नाम सुना। हाथी को देखने की उत्सुकता जागी। वे अवकाश ही नहीं रहता। हाथी के पास गए। आंख की शक्ति उनके पास नहीं थी। उन्होंने स्पर्श शक्ति का प्रयोग किया, हाथी को छूकर देखा। आज एक भाई अपने भाई को सहन करने की स्थिति हाथी कैसा लगा? इस जिज्ञासा के समाधान में पहला में नहीं है। पिता-पुत्र के संबंधों में बढ़ती जा रही कटुता । __व्यक्ति बोला-'हाथी खंभे जैसा है।' दूसरा बोला—'हाथी बताती है कि पुत्र में इतनी भी क्षमता नहीं है कि वह अपने केले के तने जैसा है।' तीसरा बोला—'हाथी मूसल जैसा पिता को सहन कर सके। सास-बहू के संबंध की जितनी : है।' चौथा बोला—'हाथी छाज जैसा है।' पांचवां बोलाबदनामी गत शताब्दी में हो चुकी है, अब नई शताब्दी उसे 'हाथी मोटी रस्सी जैसा है।' कौन-सा 'तोहफा' देगी--कहा नहीं जा सकता। इन सब पांचों व्यक्तियों ने अपने स्पर्श की अनुभूति को संबंधों से भी घनिष्ठ संबंध होता है पति-पत्नी का। दो शब्दों का परिधान दे दिया। पांचों अपनी-अपनी बात पर व्यक्ति एक-दूसरे का पूरक बनने का संकल्प स्वीकार कर अड़ गए। हाथी का स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया। उनके अपनी जीवनयात्रा शुरू करते हैं। उन दोनों का सुख-दुख विवाद का भी अंत नहीं हुआ। साझा होता है, किंतु आपसी समझ के अभाव में वे बिछुड़ पांचों मित्रों के बीच विवाद चल रहा था। उस समय जाते हैं। काश वे आचार्यश्री तुलसी के अग्रांकित परामर्श के वहां एक आदमी आया। वह चक्षुष्मान था। उसने हाथी को अनुसार एक-दूसरे को सहन कर सहयात्रा कर पाते। देखा और कहा-'भाइयो! आप सब झूठे हो और सभी आचार्यश्री ने व्यवहार-बोध में लिखा है सच्चे हो।' यह एक नई समस्या खड़ी हो गई। चक्षुष्मान मेरी हरकत सहे सहज वह आदमी ने उनको समझाते हुए कहा-'आपने हाथी को नहीं मैं भी उसकी क्यों न सहूं छुआ, उसके एक-एक अंग को छूकर देखा है। उसका पैर साथीरूप निभाना है तो खंभे जैसा है। उसकी सूंड केले के तने जैसी है। उसका दांत सहिष्णुता के साथ रहूं।। ___ मूसल जैसा है। उसका कान छाज जैसा है। उसकी पूंछ पति-पत्नी दोनों सहिष्णुता की कला में निष्णात हों मोटी रस्सी जैसी है। तुम अपनी पकड़ को सत्य और दूसरों तो तलाक की नौबत नहीं आ पाती। यदि सहना नहीं आता की पकड़ को मिथ्या बताते हो, इसलिए तुम सब झूठे हो। है तो बहुत छोटी-छोटी बातें अलगाव का कारण बन जाती तुम अपने-अपने सत्यांश को मिलाकर अखंड सत्य को हैं। इससे स्पष्ट होता है कि असहिष्णुता पारिवारिक या प्राप्त कर सकोगे।' अंधे मित्रों की समस्या समाहित हो गई। सामाजिक बिखराव के लिए उत्तरदाई है। यह एक व्यापक यह अनेकांत का प्रयोग है। इसके माध्यम से ऐसे सेतु का समस्या है। परिवार, समाज, संस्थान, राज्य, राष्ट्र और निर्माण हो सकता है, जो इस तट से उस तट तक पहुंचाकर उससे आगे पूरा विश्व इस समस्या से आक्रांत है। न्यूयार्क सत्य का साक्षात्कार करा देता है। स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 । अनेकांत विशेष.97 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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