Book Title: Jain Agam aur Agamik Vyakhya Sahitya Ek Adhyayan Author(s): Sudarshanlal Jain Publisher: Z_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf View full book textPage 7
________________ डॉ. सुदर्शनलाल जैन जिनदासगणि आदि ने विविध टीकायें लिखीं है। भिन्न-भिन्न व्याख्याओं में इसकी गाथा संख्या भिन्न-भिन्न है । माणिक्यशेखर की दीपिकाटीका में इस नियुक्ति की 1615 गाथायें हैं। कहीं-कहीं जिनभद्रकृत विशेषावश्यकभाष्य की गाथायें भी नियुक्ति गाथाओं में मिली हुई हैं। इसमें पुष्प, धान्य, रत्न, चतुष्पद आदि पदों के व्याख्यान से विविध विषयों की 2. दशवैकालिकनिर्युक्ति सम्यक् जानकारी मिलती है। 3. उत्तराध्ययननियुक्ति इसमें विविध पदों की नियुक्ति के प्रसंग में अंग की व्याख्या करते हुए गंधाग, औषधांग, मद्यांग, शरीरांग, युद्धांग आदि के भेद-प्रभेदों का वर्णन है। सत्रह प्रकार के मरण की भी व्याख्या है। 4. आचारांगनिर्युक्ति इसके प्रारम्भ में आचारांग का अडअंग में प्रथम स्थान माने जाने का हेतु बतलाया गया है । अन्त में "आचारांग की पंचम चूला निशीथ की नियुक्ति बाद में करूँगा" कहकर उसे छोड़ दिया है। 5. सूत्रकृतांगनिर्युक्ति इसमें सूत्रकृतांग शब्द का विवेचन करते हुए गाथा, पुरुष, समाधि, आहार आदि विविध पदों की व्याख्या की गई है। ➖➖ 6. दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति -- इसमें समाधि, स्थान, चित्त, पर्यूषणा, मोह आदि पदों की नियुक्तियाँ हैं । 7. बृहत्कल्पनियुक्ति इसमें भाष्य गाथायें मिश्रित हो गई हैं। इसमें ताल, नगर, राजधानी, उपाश्रय, चर्म, मैथुन आदि की महत्त्वपूर्ण नियुक्तियाँ हैं। बीच-बीच में दृष्टान्तरूप कथानक भी हैं। -- 111 8. व्यवहारनियुक्ति -- इसमें भी भाष्य गाथायें मिश्रित हो गई हैं। यह बृहत्कल्प की पूरक रूप निर्युक्ति है। इसमें साधुओं के आचार-विचार से सम्बन्धित पदों की संक्षिप्त विवेचना है। -- 9. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति - अनुपलब्ध है। 10. ऋषिभाषितनियुक्ति - अनुपलब्ध है। ओघनियुक्ति, पिण्डनिर्युक्ति, पंचकल्पनिर्युक्ति और निशीथनिर्युक्ति क्रमशः दशवैकालिकनिर्युक्ति, बृहत्कल्पनिर्युक्ति और आचारांगनिर्युक्ति की पूरक हैं । संसक्तनियुक्ति परवर्ती किसी अन्य आचार्य की रचना है। गोविन्दाचार्य की गोविन्दनियुक्ति अनुपलब्ध है। ओघनिर्युक्ति और पिण्डनिर्युक्ति को मूलसूत्रों में भी गिनाया जाता है । भाष्य • नियुक्तियों के संक्षिप्त तथा गूढ़ होने से उनका विस्तार से विचार करने हेतु तथा गूढार्थ के रहस्य को प्रकट करने के लिए भाष्य लिखे गए। जिस तरह प्रत्येक आगम ग्रन्थ पर नियुक्ति नहीं लिखी जा सकी, उसी प्रकार प्रत्येक नियुक्ति पर भाष्य भी नहीं लिखे जा सके। कुछ भाष्य तो नियुक्तियों पर है परन्तु कुछ भाष्य मूलसूत्रों पर भी है। इस भाष्य साहित्य का कई दृष्टियों से अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। कुछ भाष्य बहुत विस्तृत है तथा कुछ भाष्य बहुत संक्षिप्त हैं। ये भाष्य भी निर्युक्तियों की तरह पद्यात्मक शैली में प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं। जिससे कहीं-कहीं भाष्य गाथायें नियुक्ति गाथाओं में मिल गई हैं। भाष्यकार के रूप में जिनभद्रगणि और संघदासगणि प्रसिद्ध हैं। विशेषावश्यकभाष्य और जीतकल्पभाष्य संघदासगणि की रचनायें हैं। सम्भवतः संघदासगणि आ. जिनभद्र के पूर्ववर्ती हैं। अन्य भाष्यकारों की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। प्रमुख 10 आगम ग्रन्थों के भाष्य निम्न हैं- Jain Education International -- -- 1. आवश्यकभाष्य आवश्यकसूत्र पर तीन भाष्य लिखे गए हैं। मूलभाष्य, भाष्य और विशेषावश्यकभाष्य । प्रथम दो भाष्य अत्यन्त संक्षिप्त हैं और उनकी गाथायें विशेषावश्यकभाष्य में मिल गई हैं। यह विशेषावश्यकभाष्य 44 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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