Book Title: Jai Kesariyanathji
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ October-2007 ४५ जय केसरियानाथजी म. विनयसागर धुलेवागढ़ में विराजमान होने के कारण ऋषभदेव धुलेवानाथ कहे जाते है । इस प्रकार केसर की बहुलता के कारण यह तीर्थ केसरियानाथजी के नाम से प्रसिद्ध है । यह तीर्थ अतिशय क्षेत्र । चमत्कारिक क्षेत्र है । पन्द्रहवीं-सोलहवीं शती मे मेवाड़ देश में पाँच तीर्थ प्रसिद्धि के शिखर पर थे - १. देलवाड़ा / देवकुलपाटक (एकलिंगजी के पास), २. करेड़ा /करहेटक, ३. राणकपुर, ४. एकलिंगजी और ५. नाथद्वारा । इसमें से देलवाड़ा और करेड़ा समय की उथल-पुथल के साथ विशेष प्रसिद्धि को प्राप्त न कर सके और राणकपुर, एकलिंगजी और नाथद्वारा यह तीनों तीर्थ आज भी उन्नति के शिखर पर हैं। महाराणा कुम्भा के पूर्व ही धर्मघोषगच्छीय श्रीहरिकलशयति ने मेदपाटतीर्थमाला की रचना की है, किन्तु उसमें कहीं भी केसरियानाथ का उल्लेख नहीं है । केसरियानाथजी की जाहोजलाली १९वीं-२०वीं शताब्दी में ही नजर आती है । दो समाजों के विचार-वैमनस्य और एकान्त आग्रह के कारण यह तीर्थ भी लपेटे में आ गया और कानून की शरण में चला गया । पद्मश्री पुरातत्त्वाचार्य मुनिश्री जिनविजयजी ने भी पुरातात्त्विक प्रमाणों के साथ अपने बयान दिये थे । एकान्तवादिता और अपने कदाग्रह के कारण कदम-बकदम उच्चतम न्यायालय में पहुँचा । कुछ दिनों पूर्व हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले / आदेश को लेकर केसरियाजी में जो खुलकर ताण्डव नृत्य खेला गया वह वस्तुत: लज्जाजनक ही है और उसकी भर्त्सना भी करनी चाहिए । उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार यह मन्दिर जैन है और राजस्थान सरकार ४ महीन के भीतर ही इसको जैन समाज के अधिकार में दे दे । इस प्रसंग के लेकर कुछ सम्भ्रान्त सज्जनों ने मुझसे अनुरोध किया कि इस सम्बन्ध में कुछ प्रमाण हो तो आप प्रस्तुत करें । स्वाध्याय के दौरान १९वीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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