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15th Biennial JAINA Convention 2009
प्रा. माणिकलाल खोरा M. A. (Hindi) राजगुरूनगर जि. पुणे महाराष्ट्र
चालीस सालतक हायस्कुल और कॉलेजके विद्यर्थीयोंको
हिन्दी पढाकर निवृत्त होनेके बाद प्रा. माणिकलाल बोरा पिछले बाइस सालसे जैन धर्मके बारेमें अध्ययन लेखन तथा प्रवचन कर रहे है | आचार्य भूवनसुरीश्वरजी की दो और पंन्यास अरुणविजयजी की चार गुजराती पुस्तकों का उन्होंने हिन्दी भाषामें अनुवाद किया है | मराठी भाषामें उन्होंने "महावीरायण" नामक भगवान महावीरके चारित्रका लेखन किया है| महाराष्ट्र के प्रसिद्ध "जैन जागृती" मासिकमें उनके धार्मिक और सामाजिक विषयोंपर अनेक लेख प्रकाशित हुने हैं |
Ecology - The Jain Way
पर्यावरण सुरक्षा में जैन दर्शन का योगदान
पृथ्वी (जमीन) आप (जल) तेज (प्रकाश) वायु (हवा) और आकाश इन पाँच मौलिक तत्वों से यह संपूर्ण जगत बनता है | पृथ्वी तत्व के चारों और वायु तत्व है | ऐसी घोड़ी सी भी जगह नहीं जहाँ वायु तत्व न हो | वायु तत्व के इसी आवरण में आप तत्व और तेज तत्व है और उस के भी चारों ओर आकाश तत्व है | पृथ्वी तत्व और आकाश तत्व के बीच में जो आप तेज और वायु तत्व है उसेही पर्यावरण कहा जाता है। इसी पर्यावरण की सहाय्यता से इस पृथ्वी तत्व पर 84 लक्ष योनियों में उत्त्पन्न सभी प्रकार के जीव रहते हैं | इन जीवों को जीने के लिए पवन (वायु) पानी (आप) और तेज (प्रकाश) की नितांत आवश्यकता रहती है। पर्यावरण ही इन तीन तत्वों की आपूर्ति करता है |
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जब ये तीन तत्व (पर्यावरण) अपनी मर्यादा में रहते है संतुलीत स्थिति में रहते हैं तब जगत के सभी जीव आनंद पूर्वक जीवनयापन कर सकते है । पृथ्वी को लपेटकर रहा हुआ यह पर्यावरण ही जगत के सभी प्राणियों का प्रमुख आधार है। जब कभी कारणवश पर्यावरण में कमबेसी हो जाती है परिवर्तन हो जाता है तब जन जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है | अतः कहा जा सकता है कि संपूर्ण जीव सृष्टि के लिय पर्यावरण यह कुदरत से निकला हुआ बहुमोल उपहार है।
कई बार स्वयं मनुष्य ही अज्ञान के कारण अथवा अपने स्वार्थ लिए कुछ ऐसी हरकतें करते है जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड जाता है प्रदूषन बढ जाता है । परिणामतः उस वातावरण में रहनेवालो जीवों को अनेक प्रकार की तकलीफों का सामना करना पडता है | इन तकलीफों से समाज मे घबराट न फैले मानवी जीवन कष्ट प्रक न हो किसी प्रकार की हानी न हो इ लिए मानवो का अज्ञान दूर करनेका. उनकी दुष्टता नष्ट करने का, उनकी दुष्ट प्रवृत्ती पर अंकुश लगाने का काम धर्म को करना पडता है | जैन दर्शन (तत्त्वज्ञान) ने मानवों को सच्चा मानव बनने का अपनी दुष्टता को छोडकर मानव की तरह जीनेका संदेश के कर पर्यावरणमें होनेवाले प्रदूषण पर रोक लगाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करके पर्यावरण की सुरक्षा एवम् संवर्धन में खासा योगदान दिया है |
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जैन दर्शन कहता है पानी का अनावश्यक अतिरेकी एवम् मनमाना उपयोग करना याने अनंत जीवों की हिंसा करना है | भ. महावीरकी वाणी है “सवे जीवावी इच्छंति जीवियुं नमरीज्जऊं" अर्थात “सभी जीव जीना चाहते है मरना कोई नहीं चाहता | संसार के हर प्राणीयोंको चाहे वह मनुष्य हो या तिर्यंच