Book Title: Itihas na Agnat Pradesh ma Swair Vihar Nirgranth Aetihasik Lekh Samucchaya Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ 60 अनुसंधान - २२ लेखक ज कही शके. 'वीतरागस्तुति 'नो छंद भुजंगप्रयात जणाव्यो छे (खंड१, पृ. २५५ ) पण ते वसन्ततिलका छे. क्यांक गेरमार्गे दोरे एवी भूलो पण छे : प्रथम खंडना प्रथम लेखना टिप्पण क्रमांक- २मां 'आचारांग - प्रथम स्कंध : ईस्वी ४३० - ३००' एम छपायुं छे; अहीं 'ई.स.पूर्वे' एम होवुं जोईतु हतुं. बंने खंडोमांना लेखोने अनुक्रममां क्रमांक अपाया छे पण ग्रन्थमां लेखनां शीर्षको साथे क्रमांक अपाया नथी. आ एक अगवडरूप बने एवी क्षति छे. व्यक्तिनामो, स्थळनामो अने ग्रन्थनामोनी अकारादि सूचि बने भागमां ग्रन्थान्ते आपी छे. ऐतिहासिक संशोधनना कार्यमां आ सूचिओ विद्वानोने सहायक नीवडशे. लेखोना अंते टिप्पणोमां लेखकना विशाळ अवगाहननी साक्षी पूरती ढगलाबंध आनुषंगिक माहिती संगृहीत छे. इतिहासना विद्यार्थीओने आमांथी माहिती अने दृष्टि बने मळे ओम छे. टिप्पणीनां विशेषनामोनी पण अकारादि सूचि होय तो खूब उपयोगी बने, पण एकदाच शक्य नथी बन्युं, बने खंडमां श्री हरिप्रसाद गं. शास्त्रीना अवलोकनलेखो छे. प्रा. बंसीधर भट्टनो आमुख प्रथम खंडने प्राप्त थयो छे. ग्रंथना वांचनमांथी पसार थतां जे थोडुंक नजरमां आव्युं ते पूर्तिरूपे नोंधवानी लालच रोकी शकतो नथी. खंड - १, पृ. १६, टि.२मां 'नोकार' परथी 'नोकारसी शब्द उतरी आव्यानुं जणाव्युं छे पण अ शब्द 'नमुक्कारसहियं' नोकारसहियं =नोकारसी ओम उतरी आव्यो होय ओवो संभव छे. 'नमुक्कारसहियं' शब्द परचख्खाणमां आवे छे. खंड- २, पृ. ६३, लेख क्र. २मां लुणाग० छे ते लूणीग होवानो पूरेपूरो संभव छे. 'णी' णा जेवो वंचाय अवुं जूनी लिपिमां बनतुं होय छे. खंड- २, पृ. ८३, प्रकृता समर्पिता च- आ श्लोकमां समर्पिता नहीं पण समर्थिता मूळ प्रतिमां हशे समर्थिता भेटले पूरी करी. सम् + अर्थ धातु समाप्तिना अर्थमां प्रयोजातो हतो. लिपिनी विचित्रताने कारणे थि अर्पि वच्चे गुंचवाडो हस्तप्रतवांचनमां थतो होय छे. खंड-२, पृ. २००, टि. पांचमां लेखके 'निज दैता' नो अर्थ शुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6