Book Title: Ishwarwad tatha Avatarwad
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 328 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड *Hanumaniramirmirmirmirmirmirmirmirrrrrr-.-.-mmam सुअवसर मिला है / जिस प्रकार अभारतीय धर्मों में जो rigidity रही, वैचारिक क्षमता पर अंकुश लगे या भिन्न विचार को जिस प्रकार दबाया गया उस कारण से वहाँ दार्शनिक क्षेत्र में वैचारिक संकुचितता ही रही / एक जैन आध्यात्मिक योगी सन्त आनन्दधन ने क्या सुन्दर कहा था राम कहो, रहमान कहे, कोई कान्ह कहे, महादेव री। पारसनाथ कहो, कोई ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयंदेव री। भाजन भेद कहावत नाना, एक मृत्तिका रूप री। तैसे खण्ड कल्पना रोपित, आप अखण्ड स्वरूप री। निज-पव रमे सो राम कहिए, रहम करे रहमान री। करे करम कान्ह सो कहिए, महादेव निर्माण री। परसे रूप पारस सो कहिए, ब्रह्म चिन्हे सो ब्रह्म री। इस विधि साधो, आप आनन्दघन, चेतनमय निष्कर्ष री। 5 सन्दर्भ स्थल :1 देबदहसुतन्त मज्झिम निकाय 3-1-1 2 हमारी परम्परा-श्री वियोगी हरि, पृष्ठ 20 3 वही, पृष्ठ 128 4. वही, पृष्ठ 20 5 "मंगल प्रभात" साप्ताहिक दिनांक 1 / 3176 अंक 6 पूर्व और पश्चिम कुछ विचार-डा. राधाकृष्णन, पृष्ठ 63 7 मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद-पीठिका, पृष्ठ ११-डा० कपिल देव पांडे 8 वही, पृष्ठ 11-12 6 वही, पृष्ठ 141 10 वही, पृष्ठ 141 11 वही, पृष्ठ 148 12 वही, पृष्ठ 24 13 वही, पृष्ठ 276 14 वही, पृष्ठ 470 15 वही, पृष्ठ 662 00 No-o-पुष्कर वाणी-o------0--0-0--0--0-0-0--0--0-0-0-------- 1 मनुष्य जैसा सोचता रहता है, वैसा ही बनता है। अगर आप दूसरों के ? दोषों और बुराइयों का चिन्तन करते रहेंगे तो वे दोष आदि आपके भीतर प्रविष्ट हो जायेंगे / बुराई सोचने वाला स्वयं बुरा बन जायेगा। अगर आप किसी के गुणों का चिन्तन करेंगे तो निःसंदेह वे गुण आपके भीतर निवास करने लगेंगे / इसीलिए तो कहा है-दोष को त्यागकर गुणों का चिन्तन करो। h-o--0--0-0--0--0--0-------------------------------------0-0-5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6