________________ केवलज्ञान की दिव्यप्रभा में गौतम स्वामी ने सर्वत्र विचरण अभिवन्दन करते हैं वहीं शास्वकार "क्षमाश्रमण महामुनि गौतम" किया। अनुभूति पूर्ण धर्मदेशना के माध्यम से सहस्रों आत्माओं को एवं "सिद्ध, बुद्ध, अक्षीण महानस भगवान् गौतम' कहकर नमन प्रतिबोध देकर सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करते रहे। महावीर-शासन को करते हैं। परवर्ती आचार्यगण तो इन्हें “समग्र अरिष्ट/अनिष्टों के उद्योतित करते हुए तीर्थ को सुदृढ़ और सबल बनाया। प्रनाशक, समस्त अभीष्ट अर्थ/मनोकामनाओं के पूरक, सकल गौतम स्वामी भगवान् महावीर के 14000 साधुओं, लब्धि-सिद्धियों के भण्डार, योगीन्द्र, विघ्नहारी एवं प्रात: स्मरणीय 36000 साध्वियों, 159000 श्रावकों और 318000 मानकर गौतम नाम का जप करने का विधान करते हुए उल्लसित श्राविकाओं के एवं स्वयं तथा अन्य गणधरों की शिष्य-परम्पराओं के हृदय से गुणगान करते हैं।" एकमात्र गणाधिपति, संवाहक और सफल संचालक होते हुए भी महिमा मंडित गौतम शब्द का अर्थ करते हुए कहते हैं- "गौ" सर्वदा नि:स्पृही, निरभिमानी एवं लाघव सम्पन्न ही रहे। अन्त में, अर्थात् कामधेनु: "त" अर्थात् तरु/कल्पवृक्ष और "म" अर्थात् भगवान के शासन की एवं स्वयं के शिष्य-परिवार की बागडोर चिन्तामणि रत्न। इसी अर्थ/भावना को प्रकट करते हुए अपने ही लघभ्राता आर्य सधर्म को सौंप दी। यही कारण है कि विनयप्रभोपाध्याय गौतम रास में स्पष्टत: कहते हैंभगवान् के प्रथम पट्टधर शिष्य एवं प्रथम गणधर होते हुए भी "चिन्तामणी कर चढ़ीयउ आज, सुरतरु सारइ वंछिय काज, महावीर की परम्परा गौतम स्वामी से प्रारम्भ न होकर सुधर्म स्वामी कामकुम्भ सहु वशि हुअए / के नाम से आज भी अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। कामगवी पूरइ मन-कामी, अष्ट महासिद्धि आवइ धामि, __ केवली होने के पश्चात् वे 12 बारह वर्ष तक महावीर वाणी सामि गोयम अनुसरउ ए // 42 // " को जन-जन के हृदय की गहराइयों तक पहुँचाते रहे। महावीर की विनयप्रभोपाध्याय यह भी विधान करते हैं-"ॐ हीं श्रीं अर्ह यशोगाथा को गाते रहे और शासन की ध्वजा को अबाधित रूप से श्रीगौतमस्वामिने नमः' मन्त्र का अहर्निश जप करना चाहिए. इससे फहराते रहे। सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं। गौतम स्वामी अपनी देश का विश्व के समस्त जीवों के गौतम के नाम की ही महिमा है कि आज भी प्रात:काल में कल्याण के लिये निरन्तर उपयोग करते रहे। बाणवें वर्ष की अहर्निश नाम-स्मरण करने से सभी कार्य सफल होते दिखाई देते हैं। परिपक्व अवस्था में उन्होंने देखा कि देह-विलय का समय निकट जैन समाज आज भी लक्ष्मी पूजन के पश्चात् नवीन बही-खाता आ गया है, तो वे राजगृह नगर के वैभारगिरि पर आये और एक में प्रथम पृष्ठ पर ही "श्रीगौतमस्वामीजी महाराज तणी लब्धि हो मास का पादपोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया। जो" लिखकर नाम-महिमा के साथ अपनी भावि-समृद्धि एवं अनशन के अन्त में देह-त्याग कर गौतम स्वामी ने निर्वाण प्राप्त सफलता की कामना उजाकर करते हैं। किया। गौतम की आत्म ज्योति, भगवान् महावीर और अनन्त वास्तविकता यह है कि आज भी गौतम स्वामी का पवित्र एवं मुक्तात्माओं की ज्योति में सदा के लिये मिल गई। महावीर के तुल्य, एकार्थ और विशेषता रहित बनकर प्रभु की वाणी को। लाखों आत्माएँ आज भी प्रभात की मंगल बेला में भक्तिपूर्वक चरितार्थ कर दिया। भाव-विभोर होकर नाम-स्मरण करते हुए बोलती है___इस प्रकार गौतम स्वामी 50 वर्ष गृहवास में, 30 वर्ष संयम अंगूठे अमृत बसे, लब्धितणा भण्डार / / पर्याय में और 12 वर्ष केवली पर्याय में कुल 92 वर्ष की आयु श्री गुरु गौतम सुमरिये, वांछित फल दातार / पूर्ण कर ईस्वी पूर्व 515 में अक्षय सुख के भोक्ता बनकर सिद्ध, नाम स्मरण के साथ जैन परम्परा में गौतम के नाम से कई तप भी प्रचलित हैं, जैसेबुद्ध, मुक्त हुए। गौतम स्वामी के नाम की महिमा 1. वीर गणधर तप, 2. गौतम पडधो तप 3. गौतम कमल तप 4. निर्वाण दीपक तप गौतम गणधर जीवन-साधना, योग-साधना और मोक्ष-साधना इन तपों की आराधना कर भक्त जन गौतम के नाम का कर विश्व के कल्याणकारी साधक बन गये। उनकी अनुपम साधना स्मरण-जप करते हुए साधना करते हैं। महावीर-शासन की परम्परा के लिये अनुकरणीय एवं आदर्श बन ऐसे महिमा मण्डित महामानव ज्योतिपुंज क्षमाश्रमण गणधर. गई। उनका प्रशस्त साधना और गुणों को देखकर जहा श्रमण गौतम स्वामी को कोटिशः नमन। केशीकुमार जैसे आचार्य "संशयातीत सर्वश्रुतमहोदधि' कह कर विद्वत खण्ड/१२४ शिक्षा-एक यशस्वी दशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org