Book Title: Homeyopathy Manav ke liye Vardan
Author(s): Paras Jain
Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ डा० पारस जैन कदापि नहीं। होम्योपैथी के निश्चित सिद्धान्त हैं। प्राकृतिक नियम के आधार पर स्थापित होने के कारण कभी बदलते नहीं। इस विज्ञान में जो आज सच है वह हमेशा सत्य रहेंगे। यही कारण है कि होम्योपैथी दिनों-दिन लोकप्रिय होती जा रही है, एक होम्योपैथ का दवाई का चुनाव किसी की राय पर निर्भर नहीं है। यदि कोई पूछे कि रोग के नाम पर नहीं जीवाणु व कीटाणु की शक्लसूरत पर नहीं, शरीर यंत्र के स्थूल परिवर्तन पर नहीं, स्वयं की राय पर नहीं तो फिर किस पर निर्भर है तो इसका उत्तर होगा कि रोगी के धातुगत विशेष लक्षणों पर, इसलिए होम्योपैथी के मशहूर डा० केंट ने बार-बार कहा है ट्रीट द पेशेंट नाट द डीजीज" इस प्रकार होम्योपैथी में रोगी की चिकित्सा की जाती है न कि रोग की। होम्योपैथ के लिए रोगी ही सर्वस्व है, रोग क्या है? यह जानना असंभव है। और रोग का कारण सूक्ष्म है, जीवन शक्ति अदृश्य है। इसलिए उसे पर जो रोग शक्ति आक्रमण करती है वह भी अदृश्य है। जीवन शक्ति को ही रोग होना सम्भव है क्योंकि यह शक्ति रहने से ही रोग होता है वरना नहीं होता होम्योपैथी मानव के लिए वरदान होम्योपैथी द्वारा कई जटिल रोग ठीक होते देखे गये हैं। चिकित्सा का प्राकृतिक विधान जिसे होम्योपैथी कहते है पाइल्स, वार्टस कार्नस, चर्म रोग इससे ठीक हो जाते हैं। का आविष्कार डा० सेमुअल हैनिमेन ने १९वीं शताब्दी के पथरी रोग में भी होम्योपैथी बड़ी कारगर हुई। 13-14 प्रारम्भ में किया था। इस प्राकृतिक नियमावलित चिकित्सा एम०एम० तक की पथरी मूत्र मार्ग से निकल जाती है। मैंने प्रणाली ने चिकित्सा जगत में एक क्रांति उत्पन्न कर दी है। स्वयं 3500 से अधिक लोगों की पथरियों को बिना आपरेशन इसकी आश्चर्यमय आरोग्यकारिणी शक्ति ने अन्य चिकित्सा के निकालने में सफलता प्राप्त की है। शैली के बड़े-बडे डाक्टरों को भी विस्मित कर दिया है और यही टैगोर मार्ग, नीमच कारण है कि आज समग्र पृथ्वी के लाखों लोगों ने इस आदर्श चिकित्सा प्रणाली को अपनाया है। होम्योपैथी में स्वस्थ मानव होम्योपैथिक डाक्टर्स एसोसियेशन आफ इण्डिया शाखा उज्जैन शरीर पर औषधियों की परीक्षा होती है। मनुष्यों पर सारे प्रयोगों द्वारा को करने के पश्चात महात्मा हैनिमेन ने यह सत्य सिद्धान्त, डा० पारस जैन को महात्मा हनीमेन सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रतिपादित किया, "जिस औषधि की मात्रा स्वस्थ मानव शरीर पर जो विकार पैदा करती है उसी दवा की लघु मात्रा वैसे ही समलक्षण युक्त प्राकृतिक रोग को आरोग्य भी करती है। यही तो है "सम समः शमयति" इसी को अंग्रेजी में सीमिलिया, सीमिलबस क्यूरेटर कहते हैं इसी का नाम डा० हैनिमेन ने रखा होम्योपैथी। होम्योपैथी में स्वस्थ मानव शरीर पर औषधियों की परीक्षा होती है अत: होमियोपैथी में मानसिक लक्षणों को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। क्या चूहे, कुत्ते, बिल्ली, बंदर, खरगोश आदि जानवरों के मानसिक लक्षण मनुष्य के मानसिक लक्षणों से मिल सकती है? 0 अष्टदशी/1160 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1