Book Title: Hindi Jain Kavya me Yog sadhna aur Rahasyawad
Author(s): Pushpalata Jain
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 16
________________ ६५८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : षष्ठम खण्ड -'बुधजन विलास' ४. ६३ वही, पृ० १७६ ६४ छार कषाय त्यागी या गहि ले समकित केशर घोरी । मिथ्या पत्थर डारि धारि लै, निज गुलाल की मोरी ।। ६५ वही, ५१ ६ ६ वही, पृ० ४६ ६७ मेरो मन ऐसी खेलत होरी। मन मिरदंग साजकरि त्यारी, तन को तमूरा बनोरी। सुमति सुरंग सारंगी बजाई, ताल दोउ करजोरी। राग पांचौ पद को री । मेरो मन ॥१॥ समवृति रूप नीर भर झारी, करुना केशर घोरी। ज्ञानमई लेकर पिचकारी, दोउ कर माहिं सम्होरी। इन्द्री पांचों सखि बोरी । मेरो मन ॥२॥ चतुरदान को है गुलाल सो, भरि भरि मूठि चलोरी। तप मेवा की भरि निज झोरी, यश की अबीर उड़ोरी। रंग जिनधाम मचोरी । मेरो मन ॥३॥ दौलत बाल खेलें अस होरी, मवमव दु:ख टलोरी। शरना ले इक श्रीजन को री, जग में लाज हो तोरी। मिल फगुआ शिव होरी । मेरो मन ॥४॥ ६८ वही, पृ० २६ -दौलत जैन पद संग्रह, पृ०२६ -----पुष्क र संस्म रण-o--------------------------------------- 6--0--0--0-0--0--0--0--0--0--0--0-0-0-0-3 आदमी बनो विहार करते-करते हम एक छोटे से गांव में पहुंचे और गुरुदेवश्री स्वयं भिक्षार्थ गये । एक घर में आप जा रहे थे कि एक आदमी ने टोका-यहाँ कोई आदमी नहीं है भीतर कहां जाते हो? इसीलिए तो जा रहा हूँ भाई, हमारा तो काम ही है जानवरों को आदमी बनाना और आदमी को देवता बना देना । टोकने वाले ने गुरुदेव की आँखों में झांककर देखा, बाबा तो राजयोगी मालूम पड़ता है, बड़ा तेजस्वी है । बोला-अच्छा-अच्छा जाओ। रोटी ले आओ। आपश्री ने कहा-नहीं, अब तो पहले तुम मेरा उपदेश सुनकर आदमी बनो, फिर ही रोटी लूगा....और आपने सचमुच ही उसे उपदेश सुनाकर आदमी ही । क्या, भक्त बना लिया। 1-0--0--0--0-0--0--0--0----0--0--0--0--0--0--0-0-0--0--0-0-0--0-0--0--0-12 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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