Book Title: Gyansara Gyanmanjarivrutti
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Devvachak, Ramyarenu
Publisher: Kailashnagar Jain Sangh Surat

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Page 484
________________ श्लोक रूपे रूपवती० लावण्यलहरीपुण्यम्... लिप्तताज्ञानसम्पात ० लिप्यते पुद्गल० लोकमालम्ब्य ० लोकसंज्ञामहानद्या लोकसंज्ञाहता हन्त ! लोकसंज्ञोज्झित० लोके सर्वनयज्ञानाम्, वचोऽनुष्ठानतो ० वत्स ! किं चञ्चल० वस्तुतस्तु गुणैः ०. वादांश्च प्रतिवादांश्च. विकल्प चषकैरात्मा० विकल्पविषयोत्तीर्णः. विद्याविवेक संपन्नो विभिन्ना अपि पन्थानः विवेकद्वीपहर्यक्षैः विषं विषस्य वह्नेश्व. विषमा कर्मणः सृष्टि० विषयोर्मिविषोद्गार:. विस्तारितक्रियाज्ञान० वृद्धास्तृष्णाजला० वेदोक्तत्वान्मनः० व्यापारः सर्वशास्त्राणाम्... शमशैत्यपुषो यस्य... Jain Education International ..... १९३ क्रम 19/1 19 / 5 श्लोक शमसूक्त सुधासिक्तम्. शरीररूपलावण्य० 11/4 शासनात् त्राण० . 11/3 शास्त्रे पुरस्कृते० 23/4 शास्त्रोक्ताचार० 23 / 3 | शुचीन्यप्यशुची ० शुद्धात्मद्रव्यमेवा० 23/6 23/8 | शुद्धानुभववान् ० 32/4 | शुद्धाः प्रत्यात्म० 9/8 | शुद्धेऽपि व्योम्नि. 3/1 | शुद्धोञ्छाद्यपि ० 8/8 | श्रेयः सर्वनयज्ञानाम्... 5/4 श्रेयो द्रुमस्य मूलानि ... 4/5 | श्रेयोऽर्थिनो हि० 6 / 1 संयतात्मा श्रये० उपसंगा. 2 संयमास्त्रं विवेकेन... 16/6 | संयोजितकरैः के० 7/8 संसारे निवसन् ० 22/7 संसारे स्वप्नवन्० 21/4 सज्ञानं यदनुष्ठानम्... 10/7 सदुपायप्रवृत्तानाम्... 20 / 3 | सन्ध्येव दिनरात्रि ० 7/2 समाधिर्नन्दनं धैर्यम्... 28/3 | सरित्सहस्रदुष्पूर०. 26 / 2 | साम्यं बिभर्ति यः० 2/7 | साम्राज्यमप्रतिद्वन्द्व० For Private & Personal Use Only क्रम 6/7 18/5 24/3 24/4 24/8 14/4 4/2 . उपसं.गा. 4 18/6 15/3 24/6 32/5 18/2 23/5 8/1 15/8 ... 12/2 11/1 10/4 11/8 31/4 26/1 20/2 7/3 21/8 30/8 ........... www.jainelibrary.org

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