Book Title: Gyansara Gyanmanjarivrutti
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Devvachak, 
Publisher: Vijaybhadra Charitable Trust Bhiladi

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Page 490
________________ 19/2 27/5 13/1 2/5 पाठः विषयः अष्टकम्...श्लोकः (100) जइ उवसंतकसाओ (आव.नि. गा. 119) 21/5 (101) जइ जिणमयं पवज्जह (भगवतीजी टीका) 11/7...32/1 (102) जत्तोच्चिय पच्चक्खं० (विशेषा.भा. गा. 2005) 2/6...10/8 (103) जह एए तह अन्ने (सन्म.त.प्र. कां. 1 गा. 15) 32/2 (104) जह चम्मकारो चम्मस्स ( ) (105) जह जह पुग्गलभोगो ( 10/7 (106) जहा कुम्मे सअंगाई (सूत्रकृ.सू.श्रु. 1 अ. 8 गा. 16) .. 11/5 (107) जं दव्वखित्तका ले 14/7 (108) जं वाइद्धं वच्चामेलियं (आव.नि. पगामसिज्झासू.) (109) जं सम्मं ति पासहा... (आचा.श्रु. 1 अ. 5 उ. 3 सू. 155) (110) जा किरिया सुट्ठयरी 11/4 (111) जीवो गुणपडिवन्नो (विशेषा.भा. गा. 2643) 18/6 (112) जे इमे अज्जत्ताए (भग.सू.श. 14 उ. 9 सू. 537) (113) जे एगं जाणइ (आचा. श्रु. 1 अ. 3 उ. 4 सू. 122) 26/4 (114) जे परभावे रत्ता 12/4 (115) जे ममाइयमई (आचा.श्रु. 1 अ. 2 उ. 6 सू. 98) 11/5 (116) जेसिं अवड्ढ पुग्गल० (श्रावकप्रज्ञ. गा. 72) 1/8 (117) जेसिं निम्मलनाणं (संवेगरङ्गशाला) 5/1 (118) जो उ अमुत्ति अकत्ता ( 4/1 (119) जो किरियावाइ सो... (दशाश्रुतस्क. चूर्णिः षष्ठीदशा) 1/8 (120) जो जाणदि अरिहंते... (प्रव.सा. गा. 80) 30/1 (121) जो य वियप्पो चिर० (ध्यानप्रकाशः) (122) जो सुअनाणं सव्वं (सम.प्रा. गा. 10) 13/5 (123) जो सुएणभिगच्छइ (सम.प्रा. गा. 9) (124) जो हेउवाय पक्खम्मि... (सन्म.त.प्र. कां 3...गा. 45) (125) ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः... ( ) (१८९) 8/4 13/5 19/8 5/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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