________________ हम तो उनके दासानुदास है ''मुनिराज तो चलते-फिरते सिद्ध हैं, हम तो उनके दासानुदास हैं" उक्त शब्द पूज्य स्वामीजी ने तब कहे जब उनसे पूछा गया कि कुछ लोग कहते हैं कि आप मुनिराजों को नहीं मानते, उनका अपमान करते हैं, उनकी निन्दा करते हैं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा - "अपमान तो हम किसी का भी नहीं करते, निन्दा भी किसी की नहीं करते; फिर मुनिराजों की निन्दा करने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता है ? शुद्धोपयोग की भूमिका में झूलते हुए नग्न दिगम्बरपरम पूज्य मुनिराज तो एक प्रकार से चलते-फिरते सिद्ध हैं, हम तो उनके दासानुदास हैं। उनकी चरणरज अपने मस्तक पर धारण कर कौन दिगम्बर जैन अपने को भाग्यशाली नहीं मानेगा?" ___ कहते-कहते जब वे भावमग्न हो गये तब मैंने उनकी मग्नता को भंग करते हुए कहा - "आजकल कुछ लोगों द्वारा यह प्रचार बहुत जोरों से किया जा रहा है कि आप मुनिविरोधी हैं।" तब वे अत्यन्त गम्भीर हो गये और बोले- "मुनिराज तो संवर और निर्जरा के मूर्तिमान स्वरूप हैं / मुनिविरोध का अर्थ है - संवर और निर्जरा तत्त्व की अस्वीकृति / जो सात तत्त्वों को भी न माने वह कैसा जैनी ? हमें तो उनके स्मरण मात्र से रोमांच हो आता है। णमो लोए सव्वसाहूणं' के रूप में हम तो सभी त्रिकालवर्ती मुनिराजों को प्रतिदिन सैकड़ों बार नमस्कार करते हैं।" - चैतन्य चमत्कार, पृष्ठ : 3536 (दिनांक 27/12/1977 को सोनगढ़ में स्वामीजी से डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल द्वारा लिये गये चौथे इन्टरव्यू का अश) आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी