Book Title: Gurugun Shattrinshtshatrinshika Kulak Part 03
Author(s): Ratnabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 390
________________ ११८१ ८९. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला एवं श्री श्रेयस्कर मंडल, महेसाणा. ९०. श्री तपागच्छ सागरगच्छ आणंदजी कल्याणजी पेढी, विरमगाम (प्रेरक : आ.श्री कल्याणबोधिसूरीश्वरजी म.). ९१. श्री महावीर श्वे. मूर्तिपूजक जैन संघ, विजयनगर, नारणपुरा, अमदावाद ९२. श्री सीमंधरस्वामि जैन संघ, अंधेरी (पूर्व) (प्रेरक : सा. श्री स्वयंप्रभाश्रीजी म.) ९३. श्री चकाला श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ (प्रेरक : आ.श्री कल्याणबोधिसूरीश्वरजी म.) ९४. श्री अठवालाईन्स श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ एवं श्री फूलचन्द कल्याणचंद झवेरी ट्रस्ट, सुरत ९५. श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ संघ - संस्थान, ब्यावर (राजस्थान) (प्रेरक : आ. श्री पुण्यरत्नसूरीश्वरजी म.सा.) ९६. पालनपुरनिवासी मंजूलाबेन रसिकलाल शेठ (हाल, मुंबई), (प्रेरक : आ. श्री कल्याणबोधिसूरीश्वरजी म.) ९७. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ श्वे.मू.जैन संघ, पद्मावती एपार्टमेन्ट, नालासोपारा (ई), (प्रेरक : प.पू.आ.श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी म.) ९८. श्री ऋषभ प्रकाशभाई गाला. संघाणी घाटकोपर (वे.) (प्रेरक : प.पू.आ.श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी म.) ९९. श्री पुखराज रायचंद आराधना भवन, साबरमती, (प.पू. व्याख्यानवाचस्पति आ.दे. श्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.की दिव्य कृपा से) १००. श्री कुंदनपुर जैन संघ, कुंदनपुर - राजस्थान, ह. श्रीशांतिलालजी मुथा + + ममता थिर सुख शाकिनी, निरममता सुखमूल । ममता शिव प्रतिकूल है, निरममता अनुकूल ॥ परनति विषय विरागता, भवतरु मूलकुठार । ता आगे क्युं करि रहे, ममता वेलि प्रचार ॥ + हहा ! मोहकी वासना, बुधकु भी प्रतिकूल । या केवल श्रुतअंधता, अहंकारको मूल ॥ रवि दूजो तीजो नयन, अंतर भाव प्रकास । करो अंध सवि परिहरी, एक विवेक अभ्यास ॥ + जबलुं भवकी वासना, जागे मोह निदान । तबलुं रुचे न लोककुं, निरमम भाव प्रधान ॥ +

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