Book Title: Guru Vani Part 03 Author(s): Jambuvijay, Jinendraprabashreeji, Vinaysagar Publisher: Siddhi Bhuvan Manohar Jain Trust View full book textPage 5
________________ ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः॥ ॥ श्री तारक गुरुदेवाय नमः। 16130M प्रस्ताव गुणी एवं गुणानुरागी, मुक्त विचार रूपी गगन में विचरण करने वाले, जङ्गम विद्यापीठ के समान पूज्य गुरुदेव का गतवर्ष अहमदाबाद जैन सोसायटी में चौमासा था। उस समय ग्राम नाना भासम्बिया निवासी कुलीन भाई मोरारजी गाला तथा कल्याणजी लालजी नन्दु कच्छ में पधारने हेतु विनंती करने के लिए आए। पहले तो पूज्य गुरुदेव ने अस्वीकार कर दिया, परन्तु आगन्तुकों का कहना था कि कच्छ बहुत समय से मेघराजा से वंचित है। आप वहाँ पधारें और अठारह अभिषेक के द्वारा कच्छ की अनेक वर्षों से प्यासी भूमि को हरियाली युक्त बनावें और अबोल प्राणियों को बचावे पूज्य गुरुदेव तो करुणा के सागर! स्वयं के लिए नहीं किन्तु जीवों की रक्षा के लिए सब कुछ करने को तैयार । उनके सत्याग्रह के कारण पूज्यश्री ने कच्छ में आने की स्वीकृति तो प्रदान कर दी किन्तु चौमासे के बाद शंखेश्वरजी आने पर उनका स्वास्थ्य अचानक ही अधिक खराब हो गया। श्रावकगण शंखेश्वरजी में पुनः विनंती के लिए पधारे । उस समय स्वास्थ्य अधिक अस्वस्थ होने पर भी जीवों पर करुणा के कारण कच्छ का दुष्काल दादा की कृपा से दूर हो इस भावना से और उनके प्रत्येक कार्य में तन, मन और धन से साथ देने वाले मोरारजी भाई तथा कल्याणजी भाई की तरफ से कृतज्ञ भाव तथा दाक्षिण्यता के कारण कच्छ में पधारने की एवं नाना आसम्बिया में चौमासा करने की स्वीकृति दी। ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी में ४०० किलोमीटर का विहार कर पूज्य गुरुदेव कच्छ में पहुँचे । तत्पश्चात् वैशाख सुदि छठ के दिन से समस्त कच्छ में श्रावकों द्वारा अभिषेक की योजना बनी। पूज्य गुरुदेव तो भद्रेश्वर तीर्थ में रहे । सुन्दर रीति से अभिषेक पूर्ण होने के बाद धीरे-धीरे विहार करते हुए पूज्य गुरुदेव ने संवत् २०५३ के आषाढ़ सुदि दूज को नाना आसम्बियाPage Navigation
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