Book Title: Gnata Dharmkatha ki Sanskrutik Virasat
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 183 ज्ञाताधर्मकथा की सांस्कृतिक विरासत है । यह ज्ञातव्य है कि जब महिला गर्भवती होती है तब गर्भ के प्रभाव से उसके अन्तर्मानस में विविध प्रकार की इच्छाएं उद्बुद्ध होती हैं। ये विचित्र और असामान्य इच्छाएं दोहद, दोहला कहीं जाती हैं। दोहद के लिए संस्कृत साहित्य में 'हिद' शब्द भी आया है। द्विहृद का अर्थ है दो हृदय को धारण करने वाली | अंगविज्जा जैन साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। उस ग्रन्थ में विविध दृष्टियों से दोहदों के संबंध में गहराई से चिन्तन किया है। जितने भी दोहद उत्पन्न होते हैं उन्हें पाँच भागों में विभक्त किया जा सकता हैशब्दगत, गंधगत, रूपगत, रसगत और स्पर्शगत । क्योंकि ये ही इन्द्रियों के मुख्य विषय हैं और इन्हीं की दोहदों में पूर्ति की जाती है ।" नौवें अध्ययन में विभिन्न प्रकार के शकुनों का उल्लेख है।" शकुन दर्शन ज्योतिषशास्त्र का एक प्रमुख अंग है। शकुनदर्शन की परम्परा प्रागैतिहासिक काल से चलती आ रही है। कथा साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि जन्म, विवाह, बहिर्गमन, गृहप्रवेश और अन्यान्य मांगलिक प्रसंगों के अवसर पर शकुन देखने का प्रचलन था । गृहस्थ तो शकुन देखते ही थे, श्रमण भी शकुन देखते थे। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार एक वस्तु शुभ मानी जाती है और वही वस्तु दूसरी परिस्थितियों में अशुभ भी मानी जाती है। एतदर्थ शकुन विवेचन करने वाले ग्रन्थों में मान्यता-भेद भी प्राप्त होता है। प्रकीर्णक 'गणिविद्या' में लिखा है कि शकुन मुहूर्त से भी प्रबल होता है। जंबूक नास (नीलकंठ), मयूर, भारद्वाज, नकुल यदि दक्षिण दिशा में दिखलाई दें तो सर्वसंपत्ति प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ में भी पारिवारिक संबंधों, शिक्षा तथा शासन व्यवस्था आदि के संबंध में भी पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। धारिणी के शयनकक्ष का वर्णन स्थापत्य कला और वस्त्रकला की अमूल्य निधि है । संदर्भ 1. (क) ज्ञाताधर्मकथा (सम्पा. - पं. शोभाचन्द नारिल्ल), ब्यावर, 1989 (ख) भगवान महावीरनी धर्मकथाओ (पं दोशी). पृ. 130 (ग) स्टोरीज फ्राम द धर्म आक नाया (बेवर) इंडियन एंटीक्योरी, 19 2. धन्मकहाणुओगे ( मुनि कमल), भाग 2 3. जैन आगमों में वर्णित भारतीय समाज ( जे सी जैन), वाराणसी 4. अठार विहिप्पगारदेसी भासाविसारएाता. अ. 1 5. कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन (पी. एस. जैन). वैशाली 1975 6. ज्ञाताधर्मकथा (व्यावर), भूमिका (देवेन्द्रमुने) पृ. 36-40 7. समवायांग, मवाद 72 8. ज्ञताधर्मकथा, अ. 16 9. कुवलयनालाकहा, धर्मपरीक्षा अभिप्राय, 10. ज्ञात्यधर्मकथा, अ. 16 11. 48, 31.13 12 बजे अ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7