Book Title: Gandharwad
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 183
________________ 160 गणधरवाद जैन-मत में देवों के चार निकाय हैं---भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क तथा वैमानिक । भवनपति निकाय के देवों का निवास जम्बूद्वीप में स्थित मेरु पर्वत के नीचे उत्तर तथा दक्षिण दिशा में है। व्यन्तर निकाय के देव तीनों लोकों में रहते हैं। ज्योतिष्क निकाय के देव मेरु पर्वत के समतल भूमिभाग से सात सौ नव्वे योजन की ऊँचाई से शुरु होने वाले ज्योतिश्चक्र में रहते हैं । यह ज्योतिश्चक्र वहाँ से लेकर एक सौ दस योजन परिमारण तक है। इस चक्र से भी ऊपर असंख्यात योजन की ऊंचाई के अन्तर उत्तरोत्तर एक दूसरे के ऊपर अवस्थित विमानों में वैमानिक देव रहते हैं। __ भवनवासी निकाय के देवों के दस भेद हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपुर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार । ___ व्यन्तर निकाय के देवों के पाठ प्रकार हैं-किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, और पिशाच । ज्योतिष्क देवों के पाँच प्रका न्द्र, ग्रह, नक्षत्र, प्रकीर्ण तारा। वैमानिक देव-निकाय के दो भेद हैं —कल्पोपपन्न, कल्पाती।। कल्पोपपन्न के बारह भेद हैं-सौधर्म, ऐशान, सानत् कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, पारण तथा अच्युत । एक मत सोलह भेद स्वीकार करता है। कल्पातीत वैमानिकों में नव ग्रंवेयक और पांच अनुत्तर विमानों का समावेश है । नव ग्रैवेयक के नाम ये हैं-सुदर्शन, सुप्रतिबद्ध, मनोरम, सर्व भद्र, सूविशाल, सुमनस, सौमनस, प्रियंकर आदित्य । पांच अनुत्तर विमानों के नाम ये हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, सर्वार्थसिद्ध । इन सब देवों की स्थिति, भोग, सम्पत्ति प्रादि के सम्बन्धों में विस्तृत वर्णन जिज्ञासुओं को तत्त्वार्थसूत्र के चतुर्थ अध्याय तथा बृहत् संग्रहणी अादि ग्रन्थों में देख लेना चाहिए। जैन-मत में सात नरक माने हैं-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःभा, तथा महातमःप्रभा ।। ये सातों नरक उत्तरोत्तर नीचे-नीचे हैं और विस्तार में भी अधिक हैं । उन में दुःख ही दुःख है। नारक परस्पर तो दुःख उत्पन्न करते ही हैं, इसके अतिरिक्त संक्लिष्ट असुर भी प्रथम तीन नरक भूमियों में दुख देते हैं। नरक का विशद वर्णन तत्त्वार्थसूत्र के तीसरे अध्याय में है, जिज्ञासु बहाँ देख सकते हैं । बनारस दि० 30-6-52 दलसुख मालवणिया अनु० पृथ्वीराज जैन, एम. .. 1. ब्रह्मोत्तर, कापिष्ठ, शुक्र, शतार ये चार नाम अधिक हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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