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गण्डव्यूहसूत्रम् । के लिए रामायण के अयोध्याकाण्ड की चिकित्तापूर्ण संहिता बनाने के है. मुझे बार वार वडादा जाना पडा । तब मूल पाठ से तुलना करके कतिपय महत्त्वपूर्ण स्थलों का पाठनिर्णय करने में उक्त लिप्यन्तर से लाभ उठाने का मौका मुझे भाग्य त् मिल गया । मुझे इस बात की बडी खुशी है कि यह मौका मुझे मिल गया, अन्या कियोटो संस्करण की नंहिता पर ही निर्भर रह कर उसका केवल पुनर्मुद्रण ही झे करना पडता । तथापि यह लष्टरूप से समझ लेना आवश्यक है कि बडोदा हस् लिपि भी केवल एक हत्तलिपि ही है, जिसमें अनेक पाठदोप, अनेक हस्तच्युतियाँ था रिक्त स्थान विद्यमान हैं तथापि यह मैंने अनुभव किया कि वह हस्तलिपि एक कुश : पंडितलेखक ने वडी सतर्कता से बनायी हैं। नवंबर १९५६ में जब मैं काठम् इमें था, तब बज्राचार्य मटने गया था, जहाँ मैंने गण्डव्यूहसूत्र की कतिपय देवनागरी ह लिपियाँ देखीं, जो हाल में काज़ पर बनी प्रतिलिपियाँ मालूम हुई । इससे यह सूचन · मिलती है कि उस प्रदेशमें उक्त सूत्र की प्राचीनतर हस्तलिपि का मिलना अब भी संभव है जिससे युवा पंडितों को मेरी संहिता का सुधार करने में मदद मिल सके ।
४. ग्रंथ का विपय-विश्लेषण नेपाली बौद्ध आगमों या धर्मों के वर्गवाले अन्य ग्रंथोंकी भाँति इस चनाका प्रारंभ एक प्रास्ताविक विभाग से होता है, जिसमें यह वर्णन रहता है कि वस्ती में अनाथपिंडद द्वारा दान में संघ को प्राप्त जेतवन उद्यान में बुद्ध बैठे हैं और वो सत्त्वों, भिक्खुओं तथा श्रावकों के संघ द्वारा उनकी परिचर्या की जा रही है। खुगण आपसमें वुद्ध की महानता की अगाधता के विषय में तथा उसके किसी अंश से प्राप्त करने के साधनों के बारे में चर्चा कर रहे हैं । इस उद्देश्यसिद्धि के हेतु कर णिमित्र सच्चा पथप्रदर्शक हो सकता है। उनकी चर्चा का रुख जानकर वुद्ध सिंहदि तृम्भित नामक समाधि में प्रविष्ट हुए, जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रदेशों से कतिपय बंधेसत्त्व उनकी परिचर्या के लिए वहाँ आ पहुँचे और इतनी संख्या में अपने प्रभुके च । ओर आसन जमाये वैठ गये कि जेतवन उद्यान का समूचा विस्तार उनसे व्याप्त हो या । बुद्ध की इस विभूति से सारिपुत्र आदि श्रावकगण परिचित नहीं थे। अनन्तर प्रत्येक बोधिसत्व ने बुद्ध की स्तुति में एक-एक लघु स्तोत्र गाया (पृ. १ से २४)। इसके पश्चात् बोधिसत्त्व समंतभद्रने, जो समाधि के स्वरूप तथा बुद्ध की इस विभू · को जानता था, संघ को यह विषय समझा दिया। उसके अनन्तर बोधिसत्त्व मंजुश्र आया और उसने भी संघके सामने बुद्ध की समाधि का रहस्य विशद किया। इसके फलखरूप समूचा संघ करुणा से प्लावित हो गया। इस करुणाभाव से प्रेरणा पाकर उन्होंने तय किया कि बोधिसत्त्वता तथा उसकी पूर्वसिद्धता प्राप्त करने में सं र के अन्य प्राणियोंकी वे सहायता करेंगे। इस हेतु उन्होंने भिक्खु, ब्राह्मण, राजा वैद्य, व्यापारी, श्रावक, राजकुमारियाँ, राजमाताएँ आदि के विभिन्न रूप धारण करके शके