Book Title: Gajapantha Tirthkshetra ka Ek Atiprachin Ullekh Author(s): Darbarilal Kothiya Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf View full book textPage 2
________________ यह सभी विद्वान् मानते हैं कि निर्वाण-भक्ति, सिद्धभक्ति, नन्दीश्वरभक्ति आदि सभी (दशों) संस्कृतभक्तियाँ प्रभाचन्द्रके क्रियाकलाप' गत उल्लेखानुसार पूज्यपादकृत हैं। जैसा कि “क्रियाकलाप' के निम्न उल्लेखसे प्रकट है ___संस्कृताः सर्वभक्तयः पूज्यपादस्वामिकृताः प्राकृतास्तु कुन्दकुन्दाचार्यकृताः',-दशभक्त्यादि सं० टी० पृ० 61 / प्रेमीजी भी प्रभाचन्द्रके इस उल्लेखके अनुसार दशों भक्तियोंको, जिनमें निर्वाण-भक्ति भी है, पूज्यपादकृत स्वीकार करते हैं और अपनी स्वीकृतिमे वह हेतु भी देते हैं कि इन सिद्धभक्ति आदि संस्कृत भक्तियोंका अप्रतिहत प्रवाह और गम्भीर शैली है', जो उनमें पूज्यपादकृतत्व प्रकट करता है', साथ ही प्रभाचन्द्रके उक्त कथनमें सन्देह करनेका भी कोई करण नहीं है। अतः प्रकट है कि असग कविसे 500 वर्ष पूर्व से भी 'गजपन्थ' निर्वाण क्षेत्रमें विश्रु त था। dance 1. जैन सा० और इति०, पृ० 121 / -403 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2