Book Title: First Steps to Jainism Part 2
Author(s): Sancheti Asso Lal, Manakmal Bhandari
Publisher: Sancheti Trust Jodhpur

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Page 168
________________ जे समकिती जोव समचेती । तिनकी कथा कहौ तुम सेती ॥ जहाँ प्रमाद क्रिया नहीं कोई । निरविकलप अनुभौ पद सोई ॥ परिग्रह त्याग जोग थिर तीनौं । करम बंध नहीं होय नवीनौं । जहाँ न राग दोष रस मोहै । प्रगट मोख मारग मुख सौहैं || पूरब बंध उदय नहीं व्यापै । जहाँ न भेद पुन्न अरु पापै || दरब भाव गुन निरमल धारा । बोध विधान विविध विस्तारा ॥ जिन्ह की सहज अवस्था ऐसी । Jain Education International तिन के हिरदं दुविधा कैसी ॥ जे मुनि छपक श्रेणि चढ़ि धाए । ते केवलि भगवान कहाए || पं. बनारसीदास कृत समयसार, नाटक - मोक्षद्वार, पृ. 239 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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