Book Title: Ek Jainetar Santkrut Jambu Charitra
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 5
________________ ८७४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय नांव-नांव बिन ना रहै, सुणौ सकल तुम जोइ। एक प्रसंग अद्भुत अति, कह समझाजं तोइ ॥२५।। १८ नाता प्रसंग बहन व्याहमाता धरी, माता जायौ जाम । तीनों तज वन कू गया (तब) रह्यो कोण को नाम ।।२६।। अष्टादश,१८ नाता भया, ए तीनों का हेतु । सो प्रसंग अब कहत हूं, सुणजो होइ सचेत ॥२७।। चौपई एक नगर में वेश्या ताक, सुत कन्या संगि जनमें जाकै । ताको तुरत ही नांव कढायो, सुलतां कुमेर नांव सो पायौ ॥२८॥ खोट नखतर जन्मे भाई, ताहि नदी में दिये बहाई । कोई नगर तल निकसे जाई, एक महाजन लीए कढाई ॥२६।। वाकै पुत्र न होता एका, यो हरि दीनौं लियौ विवेका। लड़को ले संग जरौ बाह्यौ, लड़की सहित दरवाजे यायो ॥३०॥ देखि पीजरो ओर ही वणीये, लड़की काढ लई हैं जनिये। दोउ बडे भये दोऊ स्याना, ताकी ब्याह भयौ परमानां ।।३।। साहूकार कोडीधज दोऊ, जोड़ो सोधे मिल न कोऊ । याके लेख लिख्यौ है भाई, ल्यो नालेर रु करो सगाई ॥३२॥ ढोल नगारा मंगल गाजै, हीरा मोती तन पर साजै । बणिय जान बणाई भारी, आप ऊतरी वाग में सारी ॥३३॥ अरध रात समूहरत होई, करता की गति लख न कोई । साहूकार मिले हैं सारा, भवन मांहि तब किया उतारा ॥३४॥ चंवरयाँ माहिं बैठा जबही, सुलता, देखी मुद्रिका तबही । तामें अंक लिखे कहे हेरि, बहन'र भाई सुलतां कुमेर ।।३।। सुलतां अंक विचार जु देखा, ताकौ पाछे कियो विवेका। भाई बहन विहाये आन, सुलतां तज्यो हथलेवो जान ॥३६॥ ह्व भयभीत कीयौ गृहत्याग, वन बन विचर ले वैराग। पूरव पाप कौन में कियो, वीर बहन घर वासों दीयौ ।।३७।। संत विवेकी बूझत डोल, सुनि सुनि वचन सबन का तोले । पीछे कुबेर भी कीधो गवना, हेरत आयो वेश्या के भवना ॥३८।। सो वेश्या ताकी महतारी, वाकै रह्यौ कर घर की नारी । वाकै पेट को इक सुत भयो, सुलतां सुं साधां यू कह्यौ ॥३६।। सुलतां चली वहाँ से जबही, वेसां के घर आई तबही । जब वेश्या सं वचन उचार, अष्टादश नाता विस्तारै ॥४०॥ १८. कठां जरौ वुहापो. १६. पूछत. RIVIDUALLY TAITRATEmaiIMARATIRTAJALMANE N TLE Imanna DROPDaman Luta Jain Eduemammer www.jamelibrary.org

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