Book Title: Dwadashangi ki Rachna Uska Rhas evam Agam Lekhan
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 12
________________ द्वादशांगी की रचना, उसका ह्रास एवं आगम-लेखन ९. महापन्नवणा ११. नंदी १३. टेविन्दथव १५. चदाविज्जय १७. पोरिसिमंडल १९. विज्जाचरणविणिच्छओ २१. झणविभत्ती २३. आयविसोही २५. सलेहणासु २७ चरणविहि २९. महाप चक्खाण आदि १. उत्तरज्झ यणाई ३. कप्पो निसीहं ५. ७. इसिभासियाई ९. दीवसागरपण्णत्ती ११. खुडियाविमाणपविभत्ती १३. अंगचूलिया १५. विवाहचूलिया १७. वरुणोववाए १९. धरणोवा २१. . वेलंधरोववाए २३. उठाणसुयं २५. नागपरियावणियाओ २७. कप्पिया २९. पुफियाओ . वहिदसाओ ३१. १. आचारांग ३. स्थानांग ५. भगवती ७. उपासकदशांग १०. पमायप्पमाय १२. अणुओगदाराई १४. तंदुलवेयालिय Jain Education International १६. सूरपण्णत्ति १८. मंडलपवेस २०. गणिविज्जा २२. मरणविभत्ती २४. वीयरागसुयं २६. विहारकप्पो २८. आउरपञ्चक्खाण कालिक श्रुत २. दसाओ ४. बवहारो ६. महानिसीह ८. जंबूदीवपण्णत्ती १०. चंदपण्णत्ती १२. महल्लियाविमाणपविभत्ती १४. वग्गचूलिया १६. अरुणोचवाए १८. गरुलोववाए २०. समोववा २२. देविन्दोववाए २४. समुट्ठाणसुय २६. निरयावलियाओ २८. कप्पवडंसिया ३०. पुप्फचूलियाओ इस प्रकार कुल ७८ श्रुत बताये गये हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा द्वारा वर्तमान में ४५ आगम माने जाते है. पर स्थानकवासी और तेरापन्थ परम्परा में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद और १ आवश्यक इस प्रकार ३२ शास्त्रों को प्रामाणिक मानते हैं । ४५ सूत्रों की संख्या इस प्रकार है 11 अंग २. सूत्रकृतांग ४. समवायांग ६. ज्ञाताधर्मकथांग ८. अंतकृतदशांग 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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