Book Title: Dvadasharnaychakram Part 2
Author(s): Mallavadi Kshamashraman, Labdhisuri
Publisher: Chandulal Jamnadas Shah

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Page 349
________________ जैनतर्कशास्त्रना महत्त्वना ग्रन्थरत्नो द्वादशारनयचक्रः:प्रथमभाग जैनतर्कसाहित्यमां द्वादशारनयचक्रनु अति महत्त्ववें स्थान छे. महावादी श्री मल्लवादीसूरिजीए, आ ग्रन्थमां जैनतर्कोने खूबज विशद अने विशिष्ट शैलीमां निरूप्यां छे. श्रीसिंहसूरगणि क्षमाश्रमणकृत न्यायागमानुसारिणी विस्तृत व्याख्याथी अलंकृत आ प्रथम भागमा, प्रथम अने द्वितीय एम बे अर आपवामां आव्या छे. पू. श्रीविजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराज कृत 'विषमपद विवेचन' नामक विस्तृत टिप्पणो पण साथेज अपायेलां होई, वांचकोने ग्रन्थनुं हार्द समजवामां घणीज सरलता थाय तेम छे. मूल्य ६ रुपिया. तत्त्वन्यायविभाकर (सटीक) जैनन्याय अने तत्त्वज्ञानना अभ्यासीओ माटे आ ग्रन्थ घणोज महत्त्वनो छे. अनेक न्यायप्रन्थोमां विकीर्ण थयेला जैन न्यायना विचारोनुं आ ग्रन्थमा संकलन करायेलं होवाथी, अभ्यासीओने अनेक ग्रन्थोनो सार आ एकज ग्रन्थमांथी मली रहे छे. पू. आचार्य देवश्री विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराज विरचित आ ग्रन्थ खोपज्ञ-टीकासहित प्रकाशित थयो छे. अनेक दर्शन पंडितोए आनी प्रशंसा करेली छे. मूल्य ५ रुपिया. सम्मति-तत्त्व-सोपान पू. आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकरजी प्रणीत सम्मति प्रकरण अने पू. आचार्यश्री अभयदेवसूरिकृत तेनी तत्त्वबोधिनीवृत्ति, न्याय साहित्यनां महामूलां रत्नो छे. विशालकाय आ ग्रन्थनुं संक्षिप्त संकलन आमां करवामां आव्यु छे. सटीक सम्मतिप्रकरणनो अभ्यास करतां पहेलां आनो अभ्यास करवाथी सरस मार्गदर्शन मलवानो संभव छे. आ संक्षिप्तीकरण पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजाए कयुं छे. मूल्य ५ रुपिया. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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