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मोक्षमाला - शिक्षापाठ २३. सत्य
दृढता कहाँसे रखें ? और रखें तो कैसी रखें ?" यह विचारते हुए खेद हो
शिक्षापाठ २३ : सत्य
सामान्य कथनमें भी कहा जाता है कि सत्य इस 'सृष्टिका आधार' है; अथवा सत्यके आधार पर यह 'सृष्टि टिकी है। इस कथनसे यह शिक्षा मिलती है कि धर्म, नीति, राज और व्यवहार ये सब सत्य द्वारा चल रहे हैं; और ये चार न हों तो जगतका रूप कैसा भयंकर हो ? इसलिए सत्य सृष्टिका आधार' है, यह कहना कुछ अतिशयोक्ति जैसा या न मानने योग्य नहीं है । वसुराजाका एक शब्दका असत्य बोलना कितना दुःखदायक हुआ था, 'उसे तत्त्वविचार करनेके लिए मैं यहाँ कहता हूँ ।'
वसुराजाका दृष्टांत
वसुराजा, नारद और पर्वत ये तीनों एक गुरुके पास विद्या पढे थे। पर्वत अध्यापकका पुत्र था अध्यापक चल बसा। इसलिए पर्वत अपनी माँके साथ वसुराजाके राजमें आकर रहा था। एक रात उसकी माँ पासमें बैठी थी, और पर्वत तथा नारद शास्त्राभ्यास कर रहे थे। इस दौरानमें पर्वतने 'अजैर्यष्टव्यम्' ऐसा एक वाक्य कहा । तब नारदने कहा, “अजका अर्थ क्या है, पर्वत ?" पर्वतने कहा, "अज अर्थात् बकरा" नारद बोला, “हम तीनों जब तेरे पिताके पास पढ़ते थे तब तेरे पिताने तो 'अज' का अर्थ तीन वर्षके 'व्रीहि' बताया था और तू उलटा अर्थ क्यों करता है ?” इस प्रकार परस्पर वचन - विवाद बढा । तब पर्वतने कहा, “वसुराजा हमें जो कहें वह सही।” यह बात नारदने भी मान ली और जो जीते उसके लिए अमुक शर्त की । पर्वतकी माँ जो पासमें बैठी थी उसने यह सब सुना । 'अज' अर्थात् 'व्रीहि' ऐसा उसे भी याद था । शर्त में अपना पुत्र हार जायेगा इस भवसे पर्वतकी माँ रातको राजाके पास गयी और पूछा, “राजन् ! 'अज' का क्या अर्थ है ?" वसुराजाने संबंधपूर्वक कहा, "अज का अर्थ 'व्रीहि' है।" तब पर्वतकी माँने राजासे कहा, "मेरे पुत्रने अजका अर्थ बकरा कह दिया है, इसलिए आपको उसका पक्ष लेना पडेगा । आपसे पूछनेके लिए वे आयेंगे।” वसुराजा बोला, "मैं असत्य कैसे कहूँ ? मुझसे यह नहीं हो सकेगा।" पर्वतकी माताने कहा, "परंतु यदि आप मेरे पुत्रका पक्ष नहीं लेंगे, तो मैं आपको हत्याका पाप दूँगी।" राजा विचारमें पड गया - " सत्यके कारण मैं मणिमय सिंहासन पर अधरमें बैठता हूँ। लोकसमुदायका न्याय करता हूँ। लोग भी यह जानते हैं कि राजा सत्य गुणके कारण सिंहासन पर अंतरिक्षमें बैठता है । अब क्या करूँ ? यदि पर्वतका पक्ष न लूँ तो ब्राह्मणी मरती है, और वह तो मेरे गुरुकी स्त्री है।" लाचार होकर अंतमें राजाने ब्राह्मणीसे कहा, “आप खुशीसे जाइये। मैं पर्वतका पक्ष लूँगा।" ऐसा निश्चय कराकर पर्वतकी माता घर आयी। प्रभातमें नारद, पर्वत और उसकी माता विवाद करते हुए राजाके पास आये । राजा अनजान होकर पूछने लगा - " पर्वत, क्या है ?" पर्वतने कहा, “राजाधिराज ! अजका अर्थ है ? यह बताइये।" राजाने नारदसे पूछा- "आप क्या कहते है ?" नारदने कहा-" 'अज'
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