Book Title: Dosh mukti ki Sadhna Pratikraman Author(s): Ratan Choradiya Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 1
________________ 15.17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 86 दोषमुक्ति की साधना : प्रतिक्रमण श्रीमती रतन चोरडिया जागकर जीने के लिए और व्रतों की शुद्धि के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है । प्रतिक्रमण से प्राप्त स्वदर्शन की प्रवृत्ति दोषों से सर्वथा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। इस प्रवृत्ति से ही श्रावक के जीवन में श्रावकत्व आता है अन्यथा वह नाममात्र का श्रावक रह जाता है । आचार्य श्री शुभचन्द्र जी म.सा. के शिष्य श्री सुमतिमुनि जी म.सा. के प्रवचन के आधार पर लिखित यह लेख सच्चे श्रावकत्व का प्रकाशक एवं निज स्वरूप का बोधक है। -सम्पादक कृत पापों की आलोचना करना, निन्दा करना, पश्चात्ताप करना प्रतिक्रमण है। जो आत्मा ज्ञानादि गुणों से यानी स्वस्थान से हटकर प्रमाद के कारण मिथ्यात्व आदि दूसरे स्थान में चला गया, उसका वापस अपने स्वरूप में आना प्रतिक्रमण है। अपने दोषों को जानकर, समझकर, स्वीकार कर, भविष्य में उनसे बचने का संकल्प करना प्रतिक्रमण है । प्रतिक्रमण दोनों समय नियमित रूप से की जाने वाली आवश्यक क्रिया है । दिनभर की क्रियाओं में जाने-अनजाने, मन-वचन-काया के योग से जो-जो भूलें होती हैं उन भूलों से हमारे व्रतों में दोष लगते हैं। उन दोषों की आलोचना करना प्रतिक्रमण है। इस प्रकार जीवन व व्रतों की शुद्धि के लिये प्रतिक्रमण अति आवश्यक क्रिया है । व्रत ग्रहण करने से हमारी इच्छाओं का निरोध होता है। पापों का पश्चात्ताप होता है तथा पुनः वे पाप व दोष हमसे न हों ऐसी सजगता व सावधानी रहती है। Jain Education International. हमने व्रत ग्रहण किये हों चाहे न किये हों, किन्तु दोष व पाप तो हमसे होते ही हैं। उन पापों के करने से हमारे अशुभ कर्मों का बंध होता है। यदि हम आलोचना व प्रायश्चित्त करते हैं तो हमारी आत्मशुद्धि हो सकती है। व्रत ग्रहण करने वाले की अपेक्षा, नहीं करने वालों को ज्यादा दोष लगते हैं। कारण वह तो बिना ब्रेक की गाड़ी है। व्रत ग्रहण करने से पर्वत जितना पाप राई जितना हो जाता है। क्योंकि व्रत ग्रहण करने से हमारी इच्छाओं का निरोध होता है। प्रातः उठने के साथ ही, हर घंटे में, हम अपने छोटे से छोटे दोषों को देखें। अपने मन-वचन व काया की प्रवृत्तियों को देखें । जो-जो दोष लग गये हों उनका उसी समय यानी हाथों हाथ हम प्रतिक्रमण कर लें। बहुत से निरर्थक कार्य दिन भर में हमसे हो जाते हैं। जो सरल व्यक्ति होते हैं वे उसी समय प्रतिक्रमण करके For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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