Book Title: Digambar Tirth Gersappa ke Jain Mandir Vartaman Durdarsha Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 1
________________ दिगम्बर तीर्थं गेरसप्पा के जैन मंदिर और उनकी वर्तमान दुर्दशा स्वर्गीय श्री अगरचन्द नाहटा जैन धर्म का प्रचार भारत के कोने-कोने में हुआ । चौबीस तीर्थंकरों के विहार, जन्म, दीक्षा, केवल और निर्वाण के स्थान तीर्थ रूप में प्रसिद्ध हुए और आगे चलकर अन्य मुनियों आदि के साधना और निर्वाण स्थल भी तीर्थ कहलाए। प्राचीन और चमत्कारी मूर्तियों के कारण भी तीथों की संख्या में वृद्धि होती गई। इस तरह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों के आज सैकड़ों तीर्थ-स्थान हैं। अनेक प्राचीन तीर्थ नष्ट हो गए और अनेक नये स्थापित होते गये। इनमें से कुछ स्थान तो दोनों सम्प्रदायों के लिए मान्य हैं, पर बहुत से स्थान दोनों के अलग-अलग हैं। दक्षिण भारत में दिगम्बर सम्प्रदाय का अधिक प्रचार रहा। अतः उनके तीर्थ दक्षिण भारत में अधिक हैं। राजस्थान, गुजरात आदि स्थानों पर श्वेताम्बरों के तीर्थों की अधिकता है। इन तीर्थों के सम्बन्ध में अनेक ग्रन्थ भी प्रकाशित हो चुके हैं। ऐसे ग्रन्थों में भी दिगम्बरों की अपेक्षा श्वेताम्बरों के तीच सम्बन्धी ग्रन्थ अधिक है। तीर्थों की सुव्यवस्था के लिए वैसे तो अलग-अलग अनेक पेढ़िया हैं, पर श्वेताम्बर तीर्थों की सबसे बड़ी पेढ़ी आनन्द जी कल्याण जी की है, जिसका मुख्य कार्यालय अहमदाबाद में है । पालीताना आदि में भी इस पेढ़ी के कार्यालय हैं । दिगम्बर तीर्थों की बड़ी समितिका कार्यालय बम्बई में है । स्वर्गीय कानजी महाराज के श्रावकों ने इधर एक नई समिति गठित की है। पुरानी समिति का को तो करोड़ों रुपए का हो चुका है, इस नई समिति में भी लगभग एक करोड़ रुपए हैं। रुपया तो समाज की तीर्थों के प्रति भक्ति के कारण प्रायः एकत्र हो जाता है, किन्तु उसका सुव्यवस्थित सदुपयोग किया जाना बहुत आवश्यक है । हमारी दृष्टि में तीर्थों के जीर्णोद्धार का जैसा और जितना कार्य आनन्द जी कल्याण जी पेढ़ी ने किया है, वैसा दिगम्बर समाज की समिति ने नहीं किया । तीयों को मानने वाले व्यक्ति जहां रहते हैं यहां उनकी संभाल, पूजा व्यवस्था आदि ठीक रहती है, किन्तु अनेक स्थानों पर मन्दिर तो काफी पुराने और अच्छे हैं परन्तु जैनों की आबादी न होने से उन मन्दिरों की स्थिति बहुत खराब है । ऐसा ही एक दिगम्बर तीर्थ गैरसण्या है जिसका उल्लेख ज्ञानसागर रचित सर्वतीर्थ बन्दना और विश्वभूषण रचित सर्वत्रैलोक्य जिनात्मक जयमाला में पाया जाता है जो डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर द्वारा सम्पादित 'तीर्थ बन्दना संग्रह ग्रन्थ में प्रकाशित है। इनमें से विश्वभूषण ने तो गेरसप्पा में पार्श्वनाथ का उल्लेख ही किया है, किन्तु ज्ञानसागर ने तीन छप्पय इस तीर्थ के सम्बन्ध में दिए हैं जिनके अनुसार गिरसोपा में रानी भैरव देवी का राज्य है। पार्श्वनाथ के तीन भूमि मन्दिर है, चार मंजिला चतुर्मुख मन्दिर दो सौ खम्भों से सुशोभित है। इस नगर के गिरसप्पा, गेरसोप्पा, गेरुसोप्पे आदि विभिन्न नाम मिलते हैं । डा० जोहरापुरकर ने लिखा है कि यह नगर मैसूर प्रदेश में पश्चिमी समुद्र के किनारे स्थित है। इसके अतिरिक्त उन्होंने और कोई विवरण नहीं दिया। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने स्वयं इस नगर को देखा नहीं । हाल ही में पुरातत्व और कला के सुप्रसिद्ध श्वेताम्बरी विद्वान् श्री मधुसूदन ढांकी का एक लेख प्राच्य विद्यामंदिर बड़ौदा की शोध पत्रिका 'स्वाध्याय' के दीपोत्सव संवत् २०३७ के अंक में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने लिखा है कि तीस वर्ष पहले गेरसप्पा के चतुर्मुख जिनात्मक का तलदर्शन कजिन्से ने प्रकाशित किया था। उससे मेरा ध्यान वहां के मन्दिरों की ओर गया । अभी चार वर्ष पूर्व कर्नाटक के शिकोगापंचक की ओर जाने पर स्वयं जाकर उस दिगम्बर तीर्थ को देखने का अवसर मिला । श्री ढांकी आजकल 'अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डियन स्टडीज' के प्रधान संचालक के रूप में बनारस में रहते हैं । इंस्टीट्यूट की ओर से उन्हें भ्रमण, फोटोग्राफी आदि सभी सुविधाएं प्राप्त हैं । अतः गेरसप्पा के जैन मंदिरों से सम्बन्धित आठ सुन्दर चित्र अपने लेख के साथ प्रकाशित किए हैं। इनमें से तीन चित्र जैन मूर्तियों के हैं, शेष मन्दिरों के । यद्यपि गेरसप्पा की यात्रा बहुत विकट है, फिर भी उन्होंने साहस करके जंगल में इन दिगम्बर जैन मंदिरों को खोज निकाला । ये जैन मन्दिर जंगल में एकान्त स्थान पर गांव से कुछ दूर हैं । इन तक पहुंचने के लिए श्री ढांकी को नौका यात्रा करनी पड़ी। अनेक कठिनाइयों के बाद वे पहुंच गए और सुन्दर चित्र व पूरी जानकारी लेकर लौटे । जगत् विख्यात जोगा के फॉल से लगभग आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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