Book Title: Digambar Parampara me Acharya Siddhasena Author(s): Kailashchandra Shastri Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 1
________________ दिगम्बर परंपरामें आचार्य सिद्धसेन कैलाशचन्द्र शास्त्री शाचार्य सिद्धसेन जैन परम्पराके प्रख्यात तार्किक और ग्रन्थकार थे। जैन परम्पराकी दोनों ही " शाखाओंमें उन्हें समान आदर प्राप्त था। किन्तु आज उनकी कृतियोंका जो समादर श्वेताम्बर परम्परामें है वैसा दिगम्बर परम्परामें नहीं है। किन्तु पूर्वकालमें ऐसी बात नहीं थी। यही दिखाना इस लेखका मुख्य उद्देश्य है। नामोल्लेख उपलब्ध दि० जैन साहित्यमें सिद्धसेनका सर्वप्रथम नामोल्लेख अकलंकदेवके तत्त्वार्थवार्तिकमें पाया जाता है। तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्यायके तेरहवें सूत्र में आगत 'इति' शब्दके अनेक अर्थोंका प्रतिपादन करते हुए अकलंकदेवने एक अर्थ 'शब्दप्रादुर्भाव' किया है। और उसके उदाहरणमें श्रीदत्त और सिद्धसेनका नामोल्लेख किया है। यथा--- 'क्वचिच्छन्दप्रादुर्भाव वर्तते-इति, श्रीदत्तमिति सिद्धसेन मिति' (त० वा० पृ० ५७) श्रीदत्त दिगम्बर परम्परामें एक महान् आचार्य हो गये हैं। आचार्य विद्यानन्दने अपने तत्वार्थ श्लोकवार्तिकमें उन्हे वेसठ वादियोंका जेता तथा 'जल्पनिर्णय' नामक ग्रन्थका कर्ता बतलाया है। अतः उनके पश्चात् निर्दिष्ट सिद्धसेन प्रसिद्ध सिद्धसेन ही होना चाहिये। अकलंकदेवकी कृतियों पर उनके प्रभावकी चर्चा हम आगे करेंगे। अतः अकलंकदेवने श्रीदत्त के साथ उन्हींका स्मरण किया, यही विशेष संभव प्रतीत होता है। गुणस्मरण विक्रमकी नवीं शताब्दीमें दिगम्बर परम्परामें दो जिनसेनाचार्य हुए हैं। उनमें से एक हरिवंशपुराण के १ द्विप्रकारं जगी जल्पं तत्त्वप्रातिभगोचरम् । त्रिषष्ठेदिनां जेता श्रीदत्तो जल्पनिर्णये॥ ४५ ॥-त. श्लो० वा. पृ० २८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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