Book Title: Digambar Parampara ke Grantho me Pratikraman Vivechan
Author(s): Ashok Kumar Jain
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ ||15,17 नवम्बर 2006 | जिनवाणी पुनः पंचम पद के आधे भाग को श्वास लेते समय और 'सव्वसाहूणं' श्वास छोड़ते समय बोलना चाहिए। इस विधि में नौ बार णमोकार मंत्र के उच्चारण के चिन्तन में सत्ताईस श्वासोच्छ्वास प्रमाण काल का एक जघन्य कायोत्सर्ग होता है। मध्यम कायोत्सर्ग का काल चौवन श्वासोच्छ्वास प्रमाण और उत्कृष्ट कायोत्सर्ग का काल एक सौ आठ श्वासोच्छ्वास प्रमाण कहा गया है। श्रावकों को प्रतिदिन दो बार प्रतिक्रमण, चार बार स्वाध्याय, तीन बार वन्दना और दो बार योगभक्ति करना चाहिए। इस प्रकार आचार्यों ने श्रमण और श्रावकों दोनों के लिए प्रतिक्रमण विधान का वर्णन किया है। हमें दोषों की शुद्धि के लिए नित्य प्रति इसको करके अपने जीवन को पावन बनाना चाहिए। - सह आचार्य, जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म-दर्शन विभाग जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5