Book Title: Dhyana ka Swaroop
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ शद्धात्मा के आश्रय से सच्चा धर्मध्यान आज भी होता है। - आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी शुद्धात्मा के आश्रय से सच्चा धर्मध्यान आज भी होता है। साक्षात् केवलज्ञान और मोक्ष जिससे होता है, ऐसा शुक्लध्यान आज नहीं होता, परन्तु जिससे शुद्ध सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र प्रगट होते हैं - ऐसा निश्चय धर्मध्यान तो आज भी होता है। आज धर्मध्यान का भी जो निषेध करता है, वह मोक्षमार्ग का भी निषेध करता है और आत्मा की शुद्धि का भी निषेध करता है। भाई ! अपने आत्मा में उपयोग को जोड़। जिसप्रकार परविषयों को ध्येय बनाकर उनमें उपयोग को एकाग्र करता है; उसीप्रकार अपने आत्मा को अन्तर में ध्येय बनाकर स्वविषय में उपयोग को एकाग्र कर; इसप्रकार तुझे धर्मध्यान होगा। ___इस धर्मध्यान से जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप शुद्धता प्रगट होती है; वह धर्म है, वह मोक्षमार्ग है। हे भाई ! ऐसे मोक्षमार्ग को आज प्रारंभ कर देगा तो एकाध भव में पूरा हो जाएगा। यदि आज उसका निषेध करेगा और विषयों में प्रवर्तेगा तो तुझे मोक्षमार्ग कहाँ से होगा? ___चौथे काल में भी आत्मा में उपयोग की एकाग्रता के बिना मोक्षमार्ग नहीं होता था, उस काल में भी आत्मा में उपयोग की एकाग्रतारूप धर्मध्यान के द्वारा ही मोक्षमार्ग होता था और आज भी इस धर्मध्यान के द्वारा ही मोक्षमार्ग होता है। - आत्मधर्म (गुजराती) वर्ष २४ अंक १२, १२ अक्टूबर १९७० से साभार मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण, पर की मुझ में कुछ गन्ध नहीं। मैं अरस, अरूपी, अस्पर्शी, पर से कुछ भी सम्बन्ध नहीं।। मैं रंग-राग से भिन्न, भेद से, भी मैं भिन्न निराला हूँ। मैं हूँ अखण्ड, चैतन्यपिण्ड, निज रस में रमने वाला हूँ।। मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता, मुझ में पर का कुछ काम नहीं। मैं मुझ में रहने वाला हूँ, पर में मेरा विश्राम नहीं।। मैं शुद्ध, बुद्ध, अविरुद्ध, एक पर-परिणति से अप्रभावी हूँ। आत्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व, मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ।। __ - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल ,

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