Book Title: Dhyan aur Karmyog
Author(s): G S Narvani
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 3
________________ ध्यान और कर्मयोग ] [ 281 बसा लिया था, इसलिए कर्तव्य-मार्ग पर हमेशा डटे रहे व निर्भयता से आगे बढ़ते रहे। अतः मनुष्य को रोजाना प्रातः एवं सायं ईश्वर के ध्यान द्वारा उनकी समीपता प्राप्त करनी चाहिए जिससे कि सच्चा ज्ञान मिलता रहे, कर्तव्य-बोध होता रहे एवं विवेक जागृत होता रहे व आत्मा सशक्त एवं बलवान बनती रहे / अन्य समय में, प्रातः उठते समय, रात को सोते समय, कोई वस्तु खाते या पीते समय, अकेले घूमते समय, फालतू क्षणों में मनुष्य को मानसिक चिंतन के द्वारा ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए, समीपता प्राप्त करते रहना चाहिए व ईश्वर से ज्ञान का प्रकाश, शांति, आनन्द प्राप्त करते रहना चाहिए। ईश्वर तो वास्तव में तत्त्व है, एक शक्ति है जिसका न कोई नाम है न रूप, जो हमने रख लिया या मान लिया वही ठीक है। वही ईश्वर शक्ति हमारे मन के संस्कारों को साफ करेगी, संसार के गंदे विचारों की धूल साफ करेगी। उससे हमारा मन का शीशा साफ रहेगा व हमें सही कर्तव्य-बोध होता रहेगा। ज्ञान और विवेक के जागृत होने के साथ-साथ ईश्वरीय शक्ति भी ध्यान के द्वारा खींचनी होगी ताकि हम कर्तव्य निभाने में सफल हो सकें। इस प्रकार हम देखते हैं कि यद्यपि कर्म अथवा कर्तव्य ही सच्ची पूजा है परन्तु बिना ध्यान या ईश्वर-उपासना के न तो सही कर्तव्य का ज्ञान हो सकता है, न उसके निभाने के सही रास्ते का ज्ञान हो पाएगा और न ही कर्तव्य-पालन हेतु शक्ति प्राप्त हो सकेगी। / प्रत्येक कर्तव्य-कर्म अपने-अपने स्थान पर महान है, परन्तु कब ? जब कर्म के पीछे जो भाव है वह पवित्र हो, भाव के पीछे जो ज्ञान है वह उद्देश्य-पूर्ति में हेतु हो और उद्देश्य वह हो जिसके आगे और कोई उद्देश्य न हो। अतः प्रत्येक कर्तव्य कर्म द्वारा अपने वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति अनिवार्य है। - अपवित्र उपाय से पवित उहग्य-पूर्ति की आशा करना भूल है, क्योंकि की हुई अपवित्रता मिटाई नहीं जा सकती और उसके परिणाम से बचा नहीं जा सकता अपितु अपवित्र उपाय का परिणाम पवित्रतम उदय को मलीन बना देगा / अतः पवित्रतम उद्देश्य की पूर्ति के लिए पवित उपाय का ही अनुसरण अनिवार्य है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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