Book Title: Dhyan Dipika Sangraha Granth Hai
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ अनुसन्धान 47 चन्द्र सकल-अक्षय-अखंड-पूर्ण होता है और उस पर से कर्ता सकलचन्द्र ने अपना गुप्त नाम इसमें छिपाया है। और अर्क, दीपालि और मणि के संख्या वाचक अंकों की गिनती पर से यह ग्रन्थ संवत् 1621 में रचा गया हो यह भी सूचित होता है / " (पृष्ठ संख्या 236) इस श्लोक से जो सकलचन्द्र ग्रहण किया गया है वह द्राविडी प्राणायाम जैसा प्रतीत होता है / स्पष्टतः सकलचन्द्र का उल्लेख हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है। उसी प्रकार अर्क, दीपाली और मणि से निर्माण संवत् का ग्रहण किस आधार से किया है प्रतीत नहीं होता / मेरी दृष्टि में इन शब्दों से 1621 निकालना दुष्कर कार्य है। यह सम्भव है कि ग्रन्थ की प्रान्त पुष्पिका में "श्री सकलचन्द्रगणि कृता ध्यानदीपिका' लिखा हो और उसी के आधार पर अनुवादक आचार्यश्री ने इस ग्रन्थ को श्री सकलचन्द्रगणि कृत मानकर ही उल्लेख किया हो / यह निर्णय करना विज्ञों का कार्य है कि यह ध्यान दीपिका ज्ञानार्णव के आधार से बना हुआ संग्रह ग्रन्थ है या मौलिक ग्रन्थ है ? श्री सकलचन्द्रोपाध्याय श्री विजयहीरसूरिजी के राज्य में विद्यमान थे। अच्छे विद्वान् थे। सतरह भेदी पूजा आदि इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं / श्री देसाई ने कुछ रचनाओं को 1644 के पूर्व और कुछ रचनाओं को 1660 के पूर्व माना है / अत: इनका समय १७वीं शताब्दी है / Clo. प्राकृत भारती जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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