Book Title: Dharmottar ke Tippan ke Karrta Mallavadi Author(s): Dalsukh Malvania Publisher: Z_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf View full book textPage 2
________________ आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ दादागुरु मल्लवादी के समय के साथ धर्मोत्तर' के समय (ई. 700) का कोई विरोध नहीं हो सकता। अतएव नयचक्रकार मल्लवादी के समय को बदलने की भी आवश्यकता नहीं रहती। इसी दूसरे मल्लवादी ने यह टिप्पण बनाया हो, यह संभव है। किन्तु तत्त्वसंग्रह में सुमति नामक एक दिगम्बर प्राचार्य के मत का खण्डन किया गया है। यदि वे ही सुमति प्रस्तुत मल्लवादी के शिष्य हैं तो तत्त्वसंग्रह के समय के साथ संगति करना आवश्यक है। तत्त्वसंग्रह के रचयिता शान्तरक्षित का समय ई०७०५-७६२ के बीच डॉ० भट्टाचार्य ने स्थिर किया है। उक्त ताम्रपट्ट में सुमति शिष्य अपराजित की विद्यमानता 821 ई० में सिद्ध होती है। डॉ० भट्टाचार्य ने सुमति का समय ई० 720 के आसपास होने का अनुमान किया है। किन्तु ऐसा मानने पर गुरु और शिष्य के बीच 100 वर्ष का अन्तर हो जाता है। अतएव सुमति का समय ई० 720 के आसपास माना जाय तो पूर्वोक्त असंगति होती नहीं। शान्तरक्षित ने तिब्बत जाने के पूर्व तत्त्वसंग्रह की रचना की है। अतएव वह ई० 746 के पहले रचा गया होगा। क्यों कि शान्तरक्षित ने तिब्बत जा कर ई. 746 में नये विहार की स्थापना की है ऐसा उल्लेख मिलता है। अतएव हम मान सकते हैं कि तत्त्वसंग्रह ई० 745 के अासपास रचा गया होगा। सुमति को भी यदि शान्तरक्षित का समवयस्क मान लें तो उनकी भी उत्तरावधि 762 ई० तक जा सकती है। ऐसी स्थिति में उनके शिष्य अपराजित की सत्ता ई० 821 में असंभव नहीं रहती। इन सब परिस्थिति का विचार करके सुमति के गुरु मल्लवादी की सत्ता ई० 700-750 के बीच मानी जा सकता है। न्यायबिन्दु के मल्लवादीकृत टिप्पण में धर्मोत्तर के पूर्ववर्ती टीकाकारों के मतों का उल्लेख तो मिलता है किन्तु धर्मोत्तर के बाद के उस के अनुटीकाकारों के मतों का उल्लेख नहीं मिलता। ऐसे कई अनुटीकाकारों के मतों का उल्लेख अन्य टिप्पणों में है जब कि मल्लवादी के टिप्पण में नहीं है। यह भी इस बात को सिद्ध करता है कि धर्मोत्तर और मल्लवादी के बीच समय का अधिक अन्तर नहीं है। अत एव मल्लवादी का समय ई० 700-750 की बीच माना जा सकता है। इसमें धर्मोत्तर और शान्तरक्षित दोनों के समय के साथ संगति है। 1. धर्मोत्तर के समय के विषय में देखो मेरी धर्मोत्तर प्रदीप की प्रस्तावना, पृ. 53. 3. तत्त्वसंग्रह, प्रस्तावना, पृ. 62. समाजाTERCHIRAL ला MILAILEEMILARINITMENDLSAAMIRMATMLAIMA M ATA HARTRIPATRIN r Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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