Book Title: Debari ke Rajrajeshwari Mandir ki Aprakashit Prashasti Author(s): Ratnachandra Agarwal Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 7
________________ MINS मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय पुष्य नक्षत्रे मिथुनाख्यलग्नसमये पूर्वेथ यामेऽकरीत। वप्पा शंकर मंदिरस्य जननी राज्ञः प्रतिष्ठा विधिम् / / 62 कुंड मण्डपवितान तोरणः दीपिते द्विजवरास्तु मण्डपे / वेदपाठमथ होममाशु ते मन्त्रपूत हविषा समासृजत् / / 63 तत्रान्वितो द्विजवरो नृपतेः पुरोधा: श्री नन्दराम जिदसौ विधिवच्चकार / वापी प्रतिश्रय शिवालय सम्प्रतिष्ठाम् श्री राजसिंहनृपते बहुपुण्यहेतोः / / 64 गोभूहिरण्य गजवाजिरथांशुकानि शैय्या सुवर्णमणिमण्डितभूषणानि / तस्मिन् महोत्सवविधौ प्रददौ दयालुः श्री राजसिंह नृपते र्जननी द्विजेभ्यः // 65 यज्ञोपवीतानि ददौ द्विजाति-बालेभ्य एषा सुतरां दयालुः / श्री राजसिंहस्य नृपस्य माता कन्या विवाहान् शतशश्चकार // 66 नित्यदापि खलु पर्व पर्वसु राजसिंह जननी मुहुम हुः / धेनुधान्य मणिकाञ्चनान्ययो विप्रभोजनमनेकशोप्यदात् / / 67 इत्थं तत्र चतुर्मुखं सगिरिजं संस्थाप्य नाम्ना शिवम्, प्रासादे हिमशैलशृंगसदृशे श्रीराजराजेश्वरम् / वापी पुण्यजलां विधाय विधिवत् कृत्वा प्रतिष्ठा विधिः, लेभे पुण्यमनंतकं जननी श्री राजसिंहप्रभोः / / 68 उपर्युक्त बृहत्प्रशस्ति में कतिपय शुद्धियां करके इसके विशद विवेचन की परम आवश्यकता है. आशा है तत्कालीन इतिहास के विद्वान् इस कार्य को पूरा कर शीघ्र ही अधिक प्रकाश डालने का कष्ट करेंगे. प्रस्तुत निबन्ध में तो उक्त प्रशस्ति का सारांश ही प्रस्तुत किया गया है. प्रस्तुत प्रशस्ति में तत्कालीन मेवाड़नरेश अरिसिंह द्वितीय के नाम की अविद्यमानता खटकती ही है. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7