Book Title: Dashlakshana Parva Author(s): Darbarilal Kothiya Publisher: Z_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf View full book textPage 2
________________ जाती है त्यों-त्यों उसके वे क्रोधादि विकार भी अल्पसे अल्पतर और अल्पतम होते हुए पूर्णतः अभावको प्राप्त हो जाते हैं। जब उक्त गुण सतत अभ्याससे पूर्णरूपमें विकसित हो जाते हैं तो उस समय आत्मामें कोई विकार शेष नहीं रहता और आत्मा, परमात्मा बन जाता है / जब तक इन विकारोंका कुछ भी अंश विद्यमान रहता है तब तक वह परमात्माके पदको प्राप्त नहीं कर सकता। जैन दर्शनमें प्रत्येक आत्माको परमात्मा होनेका अधिकार दिया गया है और उसका मार्ग यही 'दश धर्मका पालन' बतलाया गया है। इस दश धर्मका पालन यों तो सदैव बताया गया है और साधजन पूर्णरूपसे तथा गृहस्थ आंशिक रूपसे उसे पालते भी है। किन्तु पर्यषण पर्व या दशलक्षण पर्वमें उसकी विशेष आराधना की जाती है / गृहस्थ इन दश धर्मोंकी इन दिनों भक्ति-भावसे पूजा करते है, जाप देते हैं और विद्वानोंसे उनका प्रवचन सुनते हैं। जैनमात्रकी इस पर्व के प्रति असाधारण श्रद्धा एवं निष्ठा-भाव है। जैन धर्ममें इन दश धर्मोके पालनपर बहत बल दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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