Book Title: Dahrma aur Vigyan Author(s): Manjushri Sadhvi Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 4
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ दूसरे उदाहरण के रूप में अजीव को लीजिए । महावीर ने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, काल और पुद्गल - ये पांच भेद अजीव के माने हैं । अब विज्ञान इन्हें ईथर (Ether ), गुरुत्वाकर्षण (gravitation ), स्पेस (space), Time और Matter के नाम से पहचानने लगा है । साथ ही यह भी सिद्ध हो गया है कि ये सभी द्रव्य न तो एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं और न ही एक दूसरे में परिवर्तित होते हैं । इससे जैन दर्शन के इस सिद्धान्त की पुष्टि होती है कि सभी द्रव्य स्वतंत्र परिणमन करते हैं, कोई किसी के अधीन नहीं है । यह केवल ‘महावीर’—‘जैनधर्म से संबंधित महावीर' की चर्चा हुई । अन्य धर्मों के विषय में भी हम चिन्तन करें तो पायेंगे कि उनमें भी वैज्ञानिक चिन्तन-बिन्दु भरे पड़े हैं । आज से ४० वर्ष पूर्व ढाका विश्वविद्यालय के दीक्षान्त भाषण में डॉ० भटनागर ने कहा था कि 'जर्मनी को अगर वेद न मिले होते तो वे लोग विज्ञान के क्षेत्र में नेता न बन सके होते ।' भौतिक विज्ञान यह मान्य कर चुका है कि 'ऋग्वेद में इन्द्र की प्रार्थनाओं में विद्युत्शास्त्र (Electric Science) है । वरुण की प्रार्थनाओं में जल विज्ञान है । पवमान की प्रार्थनाओं में सब gases का विज्ञान है । पूषन् (सूर्य) की प्रार्थनाओं में अणु - विज्ञान है और अग्नि की प्रार्थनाओं से समग्र ऊर्जाविज्ञान है ।' मैंने कहीं पढ़ा है कि पाणिनि व्याकरण के आधार पर वैज्ञानिकों ने वायुयान - विज्ञान का विकास किया है । नैयायिकों - वैशेषिकों और सांख्यों की सृष्टि - विकास सम्बन्धी मान्यताएँ भी विज्ञान के विकास में उपयोगी सिद्ध हुई हैं । यह एक धार्मिक व्यक्ति की वैज्ञानिकता ही है कि वह ग्राम और नगर के सभी प्रकार के प्रदूषणों से दूर एकान्त जंगल की गिरि-कंदरा में निवास करना चाहता है। इसके विपरीत, विज्ञान के कारण प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है । उदाहरणों का उक्त लेखा-जोखा यद्यपि इस लघुकाय निबन्ध में कुछ विस्तृत प्रतीत होता है, तथापि विषय के स्पष्टीकरण में अतीव आवश्यक है । उक्त उदाहरणों से निर्णीत हो जाता है कि 'विज्ञान' आत्मा को आत्मा द्वारा भी हो सकता है, और बाह्य परीक्षणों द्वारा भी । लेकिन धर्म आत्मा की ही वस्तु है, प्रयोगशाला की नहीं, प्रयोगशाला - जन्य विज्ञान की भी नहीं । धर्म और विज्ञान यह तुलना आत्मधर्म और प्रयोगशाला - जन्य विज्ञान की है । यह विज्ञान हमें भौतिक उत्कर्ष की ओर ले जाने में सहायक है, इन्द्रियों और मन की विषय-सन्तुष्टि / सम्पुष्टि में मददगार है, आरामपरस्त जिन्दगी (Luxurious life) इसी के कारण मनुष्य जी पाता है तथा सुख और सुविधाओं का अंबार 1. मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, अ० 2, पृ० 332 धर्म और विज्ञान : साध्वी मन्जुश्री | १५६Page Navigation
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