Book Title: Chyar Dhyan Vichar Lesh
Author(s): Malti K Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ 50 अनुसंधान-२३ छइ । अनइ छठइ गुणठाणइ पिण एक हिंसा रुद्रध्यानना परिणाम किणही जीवनइ छइ । हिवर धर्मध्यान कहइ छइ । धर्मनो चींतवणो ते धर्मध्यान कहीजइ । ते धर्मध्यानरा पाया च्यार छइ । आज्ञाविचय १ अपायविचय २ विपाकविचय ३ संस्थानविचय ४. तिहां पहिलं आज्ञाविचय कहइ छइ । जे वीतरागदेवनी आज्ञा तहति करि मानइ सरदहइ एतलइ भगवंतइ द्रव्य छनो स्वरूप नय-प्रमाण - निक्षेपा सिद्धस्वरूप निगोदस्वरूप जिम का तिम सरदहइ । वीतरागनी आज्ञा नित्य स्याद्वादपणइ निश्चय व्यवहारपणइ मानइ सरदहइ ते आज्ञाविचय धर्मध्यान कही |१| हिवर बीजो अपायविचय धर्मध्यान कहइ छइ । जे जीवमइ अशुद्ध पणइ कर्मसूं संसारनावस्थामइ अनेक अपाय कहतां दूषण छइ । अज्ञान रागद्वेष कषाय आश्रव ए माहरा नही हूं इणांसूं न्यारो छु । अनंत ज्ञानदर्शनवीर्यमयी शुध - बुधि अविनासी छु । अज अनादि अनंत अक्षय । अक्षर अनक्षर अचल अकल अमल अगम अनामी अरूपी अकर्मा अबंधक अनुदय अनुदीरक अजोगी अभोगी अरोगी अभेदी अवेदी अच्छेदी अखेदी अकषायी असखायी अलेशी अशरीरी अभासी अनाहारी अव्याबाध अनवगाही अगुरुलघु अपरिणामी अनिद्री अप्राणी अयोनी असंसारी अमर अपर अपरंपर अव्यापी अनाश्रित अकंप अविरुद्ध अनाश्रव अलख असोक लोकालोकापायक शुद्ध चिदानंद माहरो जीव छइ । एहवो जे ध्यान ते अपायविचय धर्मध्यान जाणवो २। हिवइ विपाकविचय धर्मध्यान कहइ छइ । जे एहवो जीव छइ तो पिण कर्मवसइ दुःखी छइ ते कर्मनो विपाक चींतवइ । जे कारण ग्यानगुण ग्यानावरणी कर्म दाब्यो । दर्शनावरणी कर्म दर्शनगुण दाब्यो छइ । इम आठ कर्मइ जीवरा आठगुण दाब्या छइ । एतलइ ए संसारमइ भमतइ जीवनई सुख दुःख ते सर्व कर्मना कीधा छइ । तिहां सुख उपनां राचवो नही । दुःख उपनां दलगीर होणो नही एहवो जे परिणाम ते विपाकविचय धर्मध्यान जाणवो |३| हिवइ संस्थानविचय धर्मध्यान कहइ छइ । जे चउदह राजमान लोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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