Book Title: Chovish Jin Namaskar
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ (46) जे लहिई सुद्ध उपयोगे , तस साधन शुभ उपयोगें।। 16 छाग-लंछन नमिई कुंथु, जे सिद्ध हुआ अलमंथु। अट्ठमि-तप कहें जे अखेद, विधि भक्ति वसे फ्लभेद।। 17 अर-लंछन नंदावर्त, यले भवभय-आवर्त। नमुं अट्ठमि-तप अवदात, वर ध्यान विवेक विख्यात / / 18 मल्ली गुण-मल्ली-माला, घट-लंछन नमीइ त्रिकाल। अट्ठमि-तप संवर शकति, दीपई अध्यातम विगति।। 19 कच्छव-लंछन मनि धरीइं, मुनिसुव्रत जिम भव तरीइं। अट्ठमि-तप शुभ उपयोग, इम प्रगट हुइ ज्ञानयोग। 20 नीलुप्पल-लंछन स्वामी, नमिनाथ नमुं शिवगामी। अट्ठमि-तप-जप फलदाई , ए छइ साचो धर्म सहाई॥ 21 शंख-लंछन नेमि नमीजइ, अट्ठमि-तप-व्रत-फल लीजइ। राजूल-मन-नयणाणंद, प्रभु भविक-कुमुद-दिनचंद।। 22 फणी-लंछन पुरिसादाणी, प्रभु पास नमो गुण-खाणी। अट्ठमि-तप ध्यानमां धरिओ, दिइ प्रभु शिवसुख गुणभरीओ॥ 23 हरि-लंछन प्रभु वीरजी वंदो, अट्ठमि-व्रत पाप-निकंदो। गुरु श्रीनयविजय सुशीस, जस ध्यान धरि निशिदीस।। 24 इति श्रीचतुर्वंशतिजिननमस्कारः संपूर्णः।। लिखितः श्रीसूरति बांदरे। श्रेयस्तु। मंगलीक!! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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