Book Title: Chitt aur Man Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ आशीर्वचन मनुष्य का शरीर अनेक रहस्यों का पिण्ड है। चेतना-संवलित शरीर और अधिक रहस्यमय है। उन रहस्यों को खोलने का प्रयास चल रहा है। कुछ खुले हैं, कुछ अधिक गहरे हुए हैं । मन भी मनुष्य के शरीर तंत्र का एक अंग है । इसे समझना बहुत कठिन है। इसके अनेक रूप हैं। कब यह अपने एक रूप को बदलकर दूसरा परिधान पहन लेता है, कुछ पता ही नहीं चलता। मन क्या है ? चित्त-वृत्तियों की अनेकरूपता मन को नए-नए रूप देती हैं अथवा मन की स्थिरता से चित्त का निरोध होता है ? मन की शक्ति क्या है ? क्या इसे चंचल या अचंचल बनाया जा सकता है ? इस प्रकार के अनेक प्रश्न हैं, जो मन की जटिलता को प्रकट करते हैं। युवाचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान शिविरों के प्रवचनों में मन की विशद व्याख्या की है। विज्ञान और मनोविज्ञान की दृष्टि से इसके स्वरूप को विश्लेषित किया है । वे कठिन से कठिन तत्त्व को सरलता से प्रस्तुति देने की कला में निष्णात हैं। अब तक जिस विषय को काफी जटिल समझा जा रहा था, उसे सहजता से बोधगम्य कराने का एक प्रयत्न है उनकी नई पुस्तक 'चित्त और मन' । अनेक दृष्टियों से चित्त और मन का विश्लेषण करने वाली यह पुस्तक प्रेक्षासाधकों के लिए तो उपयोगी है ही, पाठ्यक्रम में भी इसका उपयोग किया जाए तो इससे व्यापक लाभ उठाया जा सकता है। जून, १९९० राणावास आचार्य तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 374