Book Title: Chaturvinshati Sandhan kavya Author(s): Kundanmal Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 2
________________ कवि जगन्नाथकी छह रचनायें उपलब्ध हैं। प्रथम चतुर्विशतिसंधानकाव्य स्वोपज्ञटीका, द्वितीय "सुखनिधान" जो तमालपुर नामक नगरमें सं० 1700 में रची गई थी। इसकी प्रतिमें कविको कविचक्रवर्तीकी उपाधिसे सम्बोधित किया गया है। तृतीय, शृंगारसमुद्रकाव्य जिसका उल्लेख सुखनिधान नामक रचनामें हुआ है। चतुर्थ, श्वेताम्बर पराजय ( केवलिमुक्तिनिराकरण ) जिसमें केवलीकेवलाहारित्वका संयुक्तिक निराकरण किया गया है / इसकी रचना सं० 1703 में दीपावलीके दिन हुई थी। पञ्चम, नेमिनरेन्द्रस्तोत्र-स्वोपज्ञटीका है जिसका उल्लेख श्वेतांबरपराजय नामक ग्रन्थमें मिलता है। इनकी षष्ठम रचना है सुषेणचरित्र जिसकी प्रतिलिपि सं० 1842 में हुई थी और यह आमेरके मठ, महेन्द्रकीर्ति भण्डारमें सुरक्षित है। कवि जगन्नाथने चतुर्विंशतिसंधानकाव्यकी रचना करते हुए स्पष्ट लिखा है : पद्येऽस्मिन् मयकाकृतांनुतिमिमां श्रीमच्चतुर्विंशतिः / तीर्थेषां कलुषापहां च नितरां तावद्भिरथैर्वरैः / / प्रत्येक किल वाच्यवाचक, रवैर्बोध्यांबुधैर्वृत्तितः / पूर्वाह्नादिषु यो बबीति, लभते स्थानं जगन्नाथतः // उपर्युक्त श्लोकसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्रत्येक श्लोकसे चौबीस अर्थ निकलते हैं जो वृषभादि चौबीस तीर्थंकरोंके स्तुति स्वरूप हैं / संस्कृत साहित्यके ऐसे ग्रन्थरत्नोंका विशेष रूपसे प्रचार-प्रसार होना चाहिये और इनसे विदेशी विद्वानोंको भी अवगत कराना चाहिये / - 226 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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