Book Title: Chatro me Sanskar Nirman Ghar Samaj va Shikshak Bhumika Author(s): Bhanvarlal Ancha Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 4
________________ 64 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड DIG I . ... . .............. ..................... .................... के भाव जागें / शिक्षक को चाहिये कि वह प्रत्येक छात्र से अपना निकट का सम्पर्क रखे, छात्र की दैनिक गतिविधि पर अपनी नजर रखे और आवश्यकता पड़ने पर छात्र को यथासन्दर्भ संकेत भी वारे / छात्रों में विनय व आदर की भावना जाग्रत हो, तत्सम्बन्धी प्रयास भी करे, उन्हें महापुरुषों की जीवनियों से अवगत कराये, नैतिकता का पाठ पढ़ाये, सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों व प्रतियोगिताओं द्वारा छात्रों को प्रोत्साहित करे, सम्मानित व पुरस्कृत करे, राष्ट्र के के प्रति प्रेमभाव जाग्रत करे / आध्यात्मिक गुरुओं को चाहिये कि वे सब धर्मों के प्रति समता का भाव पैदा करें, साम्प्रदायिकता से दूर रखें तथा अहिंसक भाव जाग्रत करें। विद्यालयी और आध्यात्मिक गुरुओं का यह भी दायित्व है कि वे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, पूजा आदि से छात्रों को दूर रखें तथा अपने घरेलू कार्यों को छात्रों से नहीं करायें। छात्रों के विषय-चयन में मदद करें तथा उनकी रुचि का ध्यान रखकर उनके अभिभावकों को सूचित करें। इस प्रकार छात्रों या बालकों में अच्छे संस्कार पैदा करने के लिये माता-पिता, समाज और शिक्षक तीनों का अपना-अपना योगदान रहता है / आवश्यकता इस बात की है कि इन तीनों में समन्वय पैदा हो, तभी संस्कारवान बालक राष्ट्र को एक नवीन दिशा दे सकते हैं। राष्ट्र के स्थायित्व व एकता के लिये यह नितान्त आवश्यक भी है। अपुच्छिओ न भासिज्जा भासमाणस्स अंतरा / पिट्ठिमंसं न खाइज्जा मायामोसं विवज्जए / -दशवकालिक 87 बिना पूछे नहीं बोले, बीच में न बोले, किसी की चुगली न खावे और कपट करके झूठ न बोले / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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