Book Title: Char Jin Stutio
Author(s): Dhurandharvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ April-2003 आंबा नारायण नतपदकज सेलडिसार, वृषबीजोरु केलां त्वामभिनौमि जितार // 6 // सालि सुदालिनतक्रम मांडा वडि जिनचंद्र, जयसि सुखीरवडां जनकश्मलहर गततन्द्र // 7 // सुंदरडोडीलाधर पापड़ पापडी सार, तूंरीआन्वित कंकोडा भततेस्तनुतार ||8|| गतरेफो फलचिन्तन डोडा पान लवंग, वरतरजायफलोन्नतजाव त्रिभुवनरंग // 9 // कलश: इत्थं श्रीत्रिशलासुतः स्तुतिपथं दीपालिकावासरे नीतः स्फारसुखासिकावलिकलैर्भोज्यैरशेषैः सुखम् / देयाद् वाचकधर्मसागरगुरोः पट्टाम्बरद्योतने सूर्यश्रीगुरुलब्धिसागरशिशोर्नेमेर्मनोवाञ्छितम् // 10 // // इति श्रीवीरजिनस्तोत्रं सुखासिकागर्भितं महोपाध्यायनेमिसागरगणिभिर्विरचितम् / / ठे. ६/चन्दन हाईवे, डीसा (बनासकांठा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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