Book Title: Chamatkaro ki Duniya me Mahuri Parshvanath Author(s): Rajratnasagar Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 2
________________ जीवित स्वामीजी की मूर्ति भगवान महावीर स्वामियों की हयाती में उनके ज्येष्ठ बन्धु श्री नन्दीवर्द्धनीजी ने बनवाई थी अत: दोनों प्रतिमाजी की साम्यता कला कारीगरी के आधार पर समकालीन होना कहा जा सकता है। किसी अन्वेषक का कहना है यह मूर्ति संप्रति महाराज के समय की होनी चाहिए। क्योंकि संप्रति महाराजा ने भरवाई हुई मूर्तियों के समान टेके आदि हैं। लेकिन टेके होने मात्र से संप्रति महाराजा के समय की है यह नहीं कह सकते, कारण संप्रति महराजा के पूर्व मूर्ति पर टेका नहीं किया जाता था यह कहने का कोई साधन या सबूत उपलब्ध नहीं है। श्री महरि पार्श्वनाथ नाम कैसे रहा ? श्री मुहरि पार्श्वनाथ भगवंत के चरण तल में सुवर्ण मुहर समा सके इतने बड़े खड्डे हैं अतः मुहरि पार्श्वनाथ नाम पड़ा। किसी का चमत्कार टिटोई में श्री मुहरि पार्श्वनाथ जैन मंदिर की बाई ओर एक जेनेतर परिवार रहता था उस परिवार के एक व्यक्ति वर्ग की मृत्यु हो गई। जब श्मशान यात्रा निकली तो जैन संघ के आगेवानों का कहना रहा कि श्मशान यात्रा को पिछले मार्ग से निकालो प्रभुजी के समक्ष से लाश ले जाना अच्छा नहीं। लेकिन जैनेतर होने से उन्होंने यह राय नहीं मानी। इस पर दोनों पक्ष अड़ गये आखिर जिसका जोर उसका शोर के अनुसार मंदिरजी के सामने से ही श्मशा यात्रा निकली। संघ के श्रावकों को बड़ा दुख हुआ। यह श्मशान यात्रा श्मशान तक पहुंची ही थी, इसी बीच एक घटना घटी उसी परिवार का एक और व्यक्ति मर गया। हाहाकार मच गया। उस जनेतर परिवार को अपनी जिद का पछतावा हुआ। उसने मंदिरजी के. सामने साष्टांग प्रणाम कर सजल नेत्रों से अपराध की क्षमा मांगी। इसी प्रकार एक चमत्कार फिर हुआ। टिटोई के ठाकुर का एक अलमस्त घोड़ा मर गया। उसकी खबर लगते ही संघ के आगेवानों ने ठाकुर साहब से विनंती की घोड़े की मृत देह को मंदिरजी के सामने से न ले जाया जावे इसके साथ पहले घटी हुई घटना का भी ख्याल दिया। लेकिन ये तो ठाकुर ठहरे इन्होंने संघ की एक बात न मानी उस समय उन ठाकुर साहब के पास अच्छी जमीन जागीरी थी। सत्ता थी क्यों माने संघ वर्ग की विनंती / आजीजी और अनुनय का जल उस सत्ता की गर्मी वाले ठाकूर साहब के दिल पर न टिके बह गया। संघ ने मौन धारण किया / घोड़े की मृत देह को वहीं से ले जाया गया। उसे जलाकर लोग कोठी पर आए तो दूसरा घोड़ा मर गया / फिर भी न माने मंदिर के सामने से ही ले जाया गया / इस प्रकार 3 घंटे में 3 घोड़े मर गए। फिर ठाकुर साहब नरम पड़े और पार्श्वनाथ प्रभु की मानता कर क्षमा मांगी। इस तरह से प्रकट प्रभावी श्री मुहरि पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमाजी आल्हादक और आलोकित है। जैन जेनेतर कई लोग यहां की मानता रखते हैं / यहां के अधिष्ठायक देव भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। तीर्थ तो संसार से तिरने में सहायक बनता है जो शुभ भाव से तीर्थ की पवित्रता को बनाए रख आत्म कल्याण के ध्येय से यात्रा करे तो क्या लाभान्वित नहीं। लेकिन यात्रार्थ जाते हैं स्वार्थ वृत्तियां लेकर, भौतिक लालसा की मांग लेकर, थोड़े बहे हुए आंसू थोड़ी दर्शाकर रखी हुई किसी की याद, किसी से मिली हुई ठोकरें, विद्रोह और कषाय इतना कूड़ाकचरा दिमाग में घर कर जाते हैं फिर कैसे किनारा लगे।। भक्ति की विफलता का यदि कोई कारण हो तो वह यह है भक्ति के बदले में हम कुछ चाहते हैं इच्छित फल की अपेक्षा रखते हैं कुछ मिले कोई दे इस तरह भक्ति की शर्त को हम भूल जाते हैं। भक्ति के लिए तो रावण मंदोदरी की तरह एकतान होकर नाच सके और चन्दनबाला जैसे अंतर की उष्मा से रो सके ऐसी भक्ति मुक्ति को आकृष्ट करती है। अंत में इस परिचय से परिचित होकर एक बार तीर्थ यात्रा के भाव के साथ उस अलबेले मुहरि पार्श्वनाथ को पूजकर जीवन को सही दिशा में संचालित करें यही मंगल मनीषा। कहना है मुहरि गांव के नाम से मुहरि पार्श्वनाथ नाम पड़ा। एक कथन और भी प्रचलित है मेवाड़ के राजा एक सुवर्ण मुहर लेकर दर्शन करने देता था इसलिए मुहरि पार्श्वनाथ नाम प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में श्री मुहरि पार्श्वनाथ तीर्थ ___ साबरकांठा जिले में टिटोई गांव है यहां वि. सं. 1828 के साल में एक मुनिराज को स्वप्न आया था। मुहरि पार्श्वनाथ प्रभु अमुक स्थल पर हैं। इसके आधार पर श्रावकों ने तलाश की और पहाड़ियों के बीच गहरी खाई में से ये प्राचीन आलोकित और चमत्कारिक मूर्ति प्राप्त हुई, साथ में यक्ष और पद्मावती देवी की मूर्ति प्राप्त हुई। इन मूर्तियों को टिटोई लाया गया और एक भव्य उत्तुंग शिखर वाले मंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठित किया गया। राजेन्द-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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