Book Title: Bramhacharya Sadhna Ka Sarvoccha Shikhar Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 8
________________ समाधि : नव बाड़: ब्रह्मचर्य की साधना की सफलता के लिए भगवान् महावीर ने ब्रह्मचर्य के रक्षात्मक नव साधनों का, गुप्तियों का उपदेश दिया है, जिनका आचरण करके ब्रह्मचर्य-व्रत की साधना करने वाला साधक अपने उद्देश्य में सफल हो सकता है। ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए जिन उपायों एवं साधनों को परम प्रभु भगवान् महावीर ने समाधि और गुप्ति कहा है, लोक-भाषा में उन्हीं को बाड़ कहा जाता है। जिस प्रकार किसान अपने खेत की रक्षा के लिए अथवा बागवान अपने बाग के नन्हे-नन्हे पौधों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर काँटों की बाड़ लगा देता है, जिससे कि कोई पशु खेत और पौधों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचा सके। साधना के क्षेत्र में भी प्रारम्भिक ब्रह्मचर्य रूप बाल-पौधे की रक्षा के लिए, बाड़ की नितान्त आवश्यकता है। भगवान् महावीर ने 'स्थानांग सूत्र' में समाधि, गप्ति और बाडों का कथन किया है। उत्तरकालीन प्राचार्यों ने भी अपनेअपने ग्रन्थों में ब्रह्मचर्य की रक्षा के इन उपायों का विविध प्रकार से उल्लेख किया है, जिसे पालन कर साधक ब्रह्मचर्य की साधना में सफल हो सकता है, और अपने मन के विकारों पर विजय प्राप्त कर सकता है। स्थानांग सूत्र : १. ब्रह्मचारी स्त्री से विविक्त शयन एवं आसन का सेवन करने वाला हो। स्त्री, पशु एवं नपुंसक से संसक्त स्थान में न रहे। २. स्त्री-कथा न करे। ३. किसी भी स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे। ४. स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों का अवलोकन न करे। ५. नित्यप्रति सरस भोजन न करे। ६. अति मात्रा में भोजन न करे। ७. पूर्व-सेवित काम-क्रीड़ा का स्मरण न करे। ८. शब्दानुपाती और रूपानुपाती न बने। ६. साता और सुख में प्रतिबद्ध न हो। उत्तराध्ययन सूत्र : १. ब्रह्मचारी स्त्री, पशु एवं नपुंसक-सहित मकान का सेवन न करे। २. स्त्री-कथा न करे। ३. स्त्री के प्रासन एवं शय्या पर न बैठे। ४. स्त्री के अंग एवं उपांगों का अवलोकन न करे । ५. स्त्री के हास्य एवं विलास के शब्दों को न सुने । ६. पूर्व-सेवित काम-क्रीडा का स्मरण न करे। ७. नित्य प्रति सरस भोजन न करे। ८. अति मात्रा में भोजन न करे। ६. विभूषा एवं शृंगार न करे। १०. शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श का अनुपाती न हो। १. ब्रह्मचर्य के प्रसंग में यहाँ एवं अन्यत्र जहाँ कहीं पुरुष ब्रह्मचारी के लिए स्त्री-संसर्ग का निषेध किया ही स्त्री ब्रह्मचारियों के लिए पुरुष-संसर्ग का भी निषेध है। २६६ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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